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________________ विलक्षण अविचार सीमा का पार नहीं हैं क्योंकि अल्प बुद्धि बालक भी जान सकता है कि उपर्युक्त श्रीबृहत्कल्पसूत्र चूर्णि पाठ और श्रीपर्युषणकल्पसूत्र पाठ इन दोनों पाठों में श्री पर्युषण पर्व आषाढ़ चतुर्मासी से यावत् ५० दिन की मर्यादा में करने शास्त्रकारों ने प्रतिबद्ध माने हैं वह ५० दिन के भीतर भी श्रीपर्युषण पर्व करना कल्पता है किंतु ५० वें दिन की रात्रि को पर्युषण पर्व किये विना उल्लंघनी नहीं कल्पती हैं, यह साफ मना लिखी हैं इसीलिये पूर्वोक्त सूत्र तथा चूर्णिपाठों के अनुसार (संमत) पूज्यपाद श्रीजिनपतिसूरिजीमहाराज ने भी अपनी समाचारी में श्रावण वा भाद्रपद मास की अधिकता होने पर आषाढ़ चतुर्मासी से ५० दिने श्रीपर्युषणपर्व करने की आज्ञा लिखी हैं और ८० दिने पर्युषण पर्व करने की मना लिखी हैं क्योंकि उपर्युक्त श्रीपर्युषण कल्पसूत्र पाठ में ५०वें दिन की रात्रि को पर्युषण किये विना उल्लंघनी ( नोसे कप्पा ) नहीं कल्पती हैं यह साफ मना लिखी हैं तथापि इस शास्त्राज्ञा का भंग करके केवल अपनी कपोल कल्पना से महात्मा श्रीवल्लभविजयजी जो अभिवर्द्धितवर्ष में ८० दिने पर्युषण पर्व करते हैं सो पंचांगी पाठों से सर्वथा प्रतिकूल होने से प्रमाण नहीं हैं । देखिये श्रुतकेवली श्रीभद्रबाहुस्वामि प्रणीत श्रीबृहत्कल्पसूत्रनिर्युक्त का पाठ । यथा अभिवडियंमि वीसा, इयरेसु सवीसइमासो। भावार्थ-प्राचीनकाल की यह रीति थी कि अभिवद्धित. वर्ष में जैनटिप्पने के अनुसार आषाढ़ पूर्णिमा से २० रात्रि बीतने पर श्रावण सुदी ५ को श्रीपर्युषणपर्व करे और चन्द्रसम्बत्सर में २० रात्रि सहित ? मास याने ५० दिन बीतने पर भाद्र सुदी ५ को पर्युषण पर्व करे । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034509
Book TitleHarsh Hriday Darpanasya Dwitiya Bhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKesharmuni Gani
PublisherBuddhisagarmuni
Publication Year
Total Pages87
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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