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________________ (१७) अर्थ-आषाढ़ चातुर्मासिक प्रतिक्रमण किये बाद पाँच पाँच दिन व्यतीत करते जहाँ वर्षावास के योग्य क्षेत्र प्राप्त हो वहाँ पर्युषण करे यावत् एकमास और वीसदिने याने ५० दिने पर्युषण पर्व अवश्य करे ॥ श्रीपर्युषणकल्पसूत्र का पाठ । वासाणं सवीसइराए मासे विइकंते वासा वासं पज्जोसवेमो अंतराविय से कप्पइ नो से कप्पइ तं रयणी उवायणावित्तए ॥ २ ॥ अर्थ-आषाढ़चतुर्मासी से २० रात्रि सहित १ मास अर्थात् ५० दिन व्यतीत होने पर वर्षावास के निमित्त पर्युषण पर्व हम करते हैं और ५० दिन के भीतर भी पर्युषण पर्व करने कल्पते हैं परंतु पर्युषण पर्व किये विना ५० वें दिन की रात्रि को उल्लंघन करना नहीं कल्पता है । वास्ते श्रावणमास की वृद्धि होने से भाद्रपद में ८० दिने अथवा भाद्रपद मास की वृद्धि होने से अधिक दूसरे भाद्रपद में ८० दिने पर्युषण होय नहीं अाज्ञाभंग दोष अवश्य लगे इस में फरक नहीं । श्रीजिनपतिसूरिजीकृत समाचारी का पाठ । साबणे भदवए वा अहिगमासे चाउमासीयो पणासइमे दिणे पज्जोसवणा कायव्वा न असीमे ॥३॥ अर्थ-श्रावण वा भाद्रपद मास अधिक होने पर आषाढ़चतुर्मासी से ५० दिने पर्युषण पर्व करना ८० दिने नहीं । श्रीवल्लभविजयजी का जैनपत्र में उत्तरलेख यथा खबरदार! होओ होशियार !! करो विचार ! निकालो सार !! लेखक Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034509
Book TitleHarsh Hriday Darpanasya Dwitiya Bhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKesharmuni Gani
PublisherBuddhisagarmuni
Publication Year
Total Pages87
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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