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________________ शास्त्रसंमत ५० दिने पर्युषण आदि शुद्ध समाचारी विनीत शिष्यों को धारण करना सर्वथा उचित है । दृष्टान्त, जैसे महात्मा श्रीबुटेराय जी महाराज के पूर्वजों की समाचारी दोनों कानों में मुखवस्त्रिका धारण करके व्याख्यान देने की थी उसको उक्त महात्मा जी ने केवल पंजाब आदि क्षेत्रों में अपनी प्रतिष्ठा सत्कार आदि न होने के कारण से भद्रीकभाव तथा सरलचित्त की अपेक्षा से उक्त समाचारी को त्याग कर दिया परंतु उनके विनीत शिष्य श्रीनीतिविजय जी आदि ने गुरु महाराज की नूतन आचरणा को कदाग्रह से नहीं ग्रहण किया किन्तु अपने गुरु महाराज के महान् पूर्वजों की शुद्ध समाचारी जो मुखवस्त्रिका बाँध के व्याख्यान देने की थी उसीको धारण किया [प्रश्न] इस पुस्तक में श्रीमोहनलाल जी महाराज के दो हस्ताक्षर पत्रों से स्पष्ट मालूम होता है कि-श्री मोहनलाल जी महाराज को अपना खरतरगच्छ में आग्रह था इसीलिये शास्त्रसंमत अपने खरतरगच्छ की समानारी पन्यास श्री यशोमुनि जी आदि शिष्य प्रशिष्यों को करवा कर श्री मोहनलाल जी महाराज ने संघ में वा अपने संघाड़े में यह भेद पाड़ा है परंतु इसमें उक्त गुरु महाराज का किंचित् भी दोष नहीं है किंतु हर्षमुनि जी आदि शिष्यों ने शास्त्रसंमत खरतरगच्छ की समाचारी करने की गुरु आज्ञा को नहीं माना वही गुरुआज्ञा उल्लंघन करने रूप हर्षमुनि जी आदि का महादोष है तथापि हर्षमुनि जी ने श्रीमोहनचारित्र के पृष्ठ ४१४ में छपवाया है किगच्छोऽयकंमदीयो, वर्दयितव्यः कथंचिदयमेव । इत्याग्रहवशतोयो, भिनत्तिसंघसनोसाधुः॥४१॥ __अर्थ-आमारो गच्छ छे एने गमे ते रीते पण वधारवोज Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034509
Book TitleHarsh Hriday Darpanasya Dwitiya Bhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKesharmuni Gani
PublisherBuddhisagarmuni
Publication Year
Total Pages87
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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