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________________ [२ ] कर, संग्रहको अनर्थका मूल मानें तो समझलो कि शान्ति दूर नहीं है। समूचे विश्व पर अधिकार जमानेवाला एक मुहूर्तमात्र भी सुखकी नींद नहीं सोता, प्राणीमात्रको आत्मतुल्य समझनेवाला तृणमात्र भी उद्विग्न नहीं होता-इससे जाना जाता है कि हिंसामें शान्ति नहीं है। इसलिए 'समूचा संसार हमारा मित्र है, किसीके साथ हमारा वैर-विरोध नहीं है' शान्तिप्रिय व्यक्तियोंका यह महामन्त्र होता है। गृहस्थ व्यक्ति भी यदि निष्प्रयोजन हिंसा न करे, दूसरोंके अधिकारोंका अपहरण न करे, तो विश्वशांतिका अन्वेषण ही क्यों करना पड़े ? जो व्यक्ति इन्द्रिय, मन और वाणी पर नियन्त्रण नहीं रख पाते वे ही कलह आदिको जन्म देते हैंइससे जाना जाता है कि असंयममें शांति नहीं है। इसलिए वीतराग वाणीमें अहिंसा, संयम और तपस्याको धर्म बताया गया है। धर्मके बिना-दूसरे शब्दोंमें, अहिंसा, संयम और अपरिग्रहके बिना शांतिका कोई बीज़ नहीं.है। यह घोषित करते हुए मुझे आत्मश्रद्धाका अनुभव हो रहा है। यदि जनता शान्तिका अर्थ जीवनके साधनोंका विस्तार करती है तो उसके लिए धर्म कुछ भी कार्यकर नहीं। वह दिन मानव-जातिके इतिहासमें अपूर्व होगा, जिस दिन धर्मका शुद्ध रूप जनताके ह्रदयमें प्रवेश पाएगा। ___ जहां तक सत्यान्वेषणका प्रश्न है-वहांतक धर्म और विज्ञान के लक्ष्य दो नहीं हैं। मानव जातिका बिकास करना; उसे सुखी बनाना ये लक्ष्य धर्म और विज्ञान के बीच एक भीत खड़ी कर देते हैं। आत्मा और परम लक्ष्य - परमात्म स्वरूप पाना, इनको भुलाकर विज्ञान-जगतने धार्मिक जगत्की कोई हानि नहीं की अपितु विज्ञानको ही अपने आपके लिए अभिशाप बनाया है। यदि इसके साथ आत्मविकास और आत्मसुखका दृष्टिकोण सन्तुलित होता तो वर्तमान संसारका मानचित्र कुछ दूसरा ही दीखता। . Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034495
Book TitleDharm Sab Kuch Hai Kuchbhi Nahi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Shwetambar Terapandhi Sampraday
Publication Year1950
Total Pages14
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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