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________________ प्राक्कथन] कर नगरको हस्तगत करनेकी धुनमें लगे। इस समय मुगल सूबा जमामुरादखां दूसरा था। प्रथम उसने वीरताके साथ मरहठोंका सामना किया। परन्तु अन्तमें उसे सुलह करनी पड़ी। सुलहके अनुसार अहमदाबाद छोड़कर उसके स्थानमें पाटन, बड़नगर, बीजापुर और राधनपुर लेकर संतोष करना पड़ा। उसने गधनपुरको केन्द्र बना नवीन स्वतंत्र राज्य विक्रम संवत् १८१३ में स्थापित किया, और गुजरातका प्रधान नगर मरहठोंके अधिक रमें आनेके साथही मुगलोंका नाम गुजरातसे सदाके लिये उठ गया। इस घटना कुछ पश्चात् पानीपतके युद्ध में मरहठोंको हारना पड़ा। और बालाजी बाजीरावकी मृत्यु हुई। और विक्रम संवत् १८१७ में बालाजी बाजीरावका दूसरा पुत्र माधवराव अपने चचा रघुनाथरावके साथ सतारा जाकर अपने पेशवा पदको राजारामसे स्वीकार कराया। यद्यपि माधवराव पेशवा बना परन्तु उसका चचा रघुनाथराव वास्तवमें पेशवा हुआ। और उसके नामसे मनमानी घरजानी करने लगा। उसने सर्व प्रथम गंगाधरको प्रतिनिधिपदसे हटाकर उसके पुत्र भास्कररावको उसका स्थान दिया। एवं नारूशंकर राजा बहादुरको मुतालिक बनाया। अनन्तर विक्रम १८१६ में पेशवाकी आज्ञासे दामाजीने राज्य पीपलाको पदाक्रान्त कर नादोद, भालोद, वारीती और गोवाली परगनाओंकी आयका आधा भाग मांगा। पर इस घटनाके एक वर्ष बाद विक्रम १८२० में राज्य पीपलाके राजा रायसिंहजीकी भतीजीके साथ दामाजीने विवाह किया और पूर्व कथित परगनाओंकी आधी आयकी मांगको छोड़ दिया। इधर दामाजी गायकवाड़ गुजरात राजपूत राज्योंको इस प्रकार एकके बाद दूसरेको कुचल रहा था। और उधर पूना और सतारा षड़यंत्रका केन्द्र बना था । रघुनाथराव मरहठा सरदारोंको पदच्युत कर अपना विरोधी बना रहा था। साथकी उसके भतीजा माधवरावके साथभी उसका मन मुटाव हो गया था। अत : माधवरावने रघुनाथरावका मृलोच्छेद करना चाहा। रघुनाथन दामाजीसे सहाय प्रार्थना की और उसने एक सेना अपने पुत्र गोविंदरावकी आधीनतामें भेजी। परन्तु रघुनाथ और गोविंदकी सम्मिलित सेना को हारना पड़ा। माधव विजयी बन कर दामाजीको ५२५००० वार्षिक कर देने और ३००० सेना शान्ति समय और ५००० सेना युद्ध समय अपने व्ययसे रखनेके लिये बाध्य कर स्वीकार कराया। एवं गुजरातका कुछ भाग दामाजीको कथित सैनिक सेवाके लिये देना स्वीकार किया। परन्तु इस अपमान जनक सन्धि पत्रपर हस्ताक्षर करनेके पूर्वही Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034491
Book TitleChaulukya Chandrika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyanandswami Shreevastavya
PublisherVidyanandswami Shreevastavya
Publication Year1937
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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