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________________ पौलुक्य चंद्रिका ] स्थानमें उसे अपने उदरमें स्थान प्रदान किया। उधृत विवरणमें कोकणपतिका दीवार उल्लेख अयिा है। प्रथमधारके उल्लेखमें राजाका नाम नहीं दिया गया है परन्तु द्वितीय धारके उल्लेखम राजाका नाम स्पष्टरूपेण सोम दिया गया है। अतः इस पुनरुक्तिसे उलेमन उपस्थित होती है। परन्तु हमारी समझमें इन दोनों उल्लेखोंको विभिन्न घटनाओंका वर्णन करनेवाला मान लेवे तो किसी प्रकारकी उलझन सामने आती नहीं दिखाती। पुनश्च कोकणका दो भागों में विभाग होकर उत्तर और दक्षिण कोकणके नामसे उल्लेख पाया जाता है। एवं देखनेमें प्राता है कि कोकणेश या कोकणपति नामसे केवल दक्षिण कोकणका ग्रहण होता है। और उत्तर कोकणका संबोधन करते समय यातो उसके पूर्व में विशेषण रूपसे उत्तर कोकण वा कापर्दि कोकणका व्यवहार किया जाता था। इन कारणोंसे हम कह सकते हैं कि प्रथम वारके उल्लेखमें दक्षिण कोकण अर्थात् कोल्हापुरके शिल्हारोंका उल्लेख किया गया है। और द्वितीय वारके उल्लेखमें उत्तर कोकणके विशेषणोंके स्थानमें राजाका नाम दिया गया। अब यदि उत्तर कोकणसे संबंध रखनेवाले उत्तर भावी दोनों कथानकको “ समुद्र तैरनेमें प्रवीण होता हुआभी डूब गया, और " महादेवके कोपके डरसे समुद्रने रक्षाके स्थानमें उदरस्थ किया" के अलंकारको निकाल बाहर करें तो सीधा सादा भाव यह निकलता है कि यादवराज महादेवसे हारकर शिल्हार सोमेश्वर नौका द्वारा समुद्र मार्गसे भागा अथवा सोमेश्वर और महादेवके मध्य जल युद्ध हुआ था। संभवतः महादेवने सोमेश्वरकी नव सेनाको पराभूत किया और बह नौकाओंके डूबनेके कारण अपनी सेनाके साथ डूब मरा अथवा सोमेश्वर जल युद्धमें हारकर जब नौकाओंके द्वारा भागा तो किसी दैवी घटनामें पड़कर नौकाओंके डूबनेके कारण डूब मरा । सोमेश्वरके पश्चात् उत्तर कोकणके शिल्हारोंका हमें कुछमी परिचय नहीं मिलता। परन्तु इनके स्थानमें यादवोंके अस्तित्वका स्पष्ट परिचय मिलता है। लाट और मुजरातमें यादव । शिल्हाराओंके इतिहासका सारांश निगुण्ठन करते समय यादवौका उल्लेख प्रसंगवश करना पड़ा था। यादवोंका उक्त उल्लेख दो बातें स्पष्ट रूपसे प्रकट करता है। प्रथमतः हमारे विवेचनीय इतिहास कालवाले राजाओंके साथ वैवाहिक संबंध, और द्वितीयतः उत्तर कोकण Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034491
Book TitleChaulukya Chandrika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyanandswami Shreevastavya
PublisherVidyanandswami Shreevastavya
Publication Year1937
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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