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________________ २९ [ प्राक्कथन सामन्त था । और इसके अधिकार में पिता के समानही भूभाग था । कापर्दिके पुत्र और उत्तराधिकारी वायुबर्णके सम्बन्धमें कुछ एतिहासिक बातोंका ज्ञान हमें प्राप्त नहीं है । परन्तु उसके और उसके उत्तराधिकारी मंझ के सम्बन्ध में अवान्तर प्रमाणसे कुछ परिचय प्राप्त होता है। अरब ऐतिहासिक मासुदीके लेखोंसे प्रकट होता है कि उसके समय, अर्थात् शक ८२८ में उत्तर कोकण में झंझ राज्य करता था। मासूदीने कंझको सैमरका राजा लिखा है। मासूदीका सैमर वर्तमान थाना जिलाका चेउल है । पुनश्च शक ६१६ के शासन पत्रसे प्रगट होता है कि स परम शैव था और उसने १२ शिव मन्दिरका निर्माण किया था । एवं उसकी कन्या agrant विवाह चांदोद ( चंद्रावती) के यादव राज भिल्लम के साथ हुआ था । अन्ततोगत्वा मान्यखेटके इतिहासके पर्यालोचनसे यह बात निर्ऋत है कि कृष्ण अकाल वर्षके गुजरात विजय के समय शिल्हार राजा जो उसका सामन्त था, साथ था । अन्यान्य ऐतिहासिक घटनाओं पर दृष्टिपात करने से प्रकट होता है कि कृष्ण अकाल वर्षका सामन्त और सहायक शिलाहार राजा झंझ था । झंझ अपुत्र मरा अतः उसका छोटाभाई गोर्गि उसका उत्तराधिकारी हुआ । परन्तु गोर्गिका केवल नाम मात्र परिचयके अतिरिक्त हमें ऐतिहासिक विवरण कुछ ज्ञात नहीं है । जिस प्रकार गोर्गिके राज्यकालका हमें कुछभी ज्ञान नहीं है उसी प्रकार उसके पुत्र वाजडके राज्यकालका इतिहास अन्धकारके गारमें पड़ा है । परन्तु वाजडके पुत्र और उत्तराधिकारी अपराजितका शक ९१९ का शासन पत्र भिवंडीसे १० मीलकी दूरीपर अवस्थित भीड़ नामक स्थानसे प्राप्त हुआ है। उक्त शासन पत्र हमें बताता है कि अपराजितके राज्यकालमें राष्ट्रकूट कक्कलको चौलुक्यराज तैलपने पराजित कर राष्ट्रकूट राज्य लक्ष्मीको अंकशायिनी बनाया था। और अपराजित स्वतंत्र हो गया था । प्रस्तुत शासन पत्र हमें दो घटनाओंका परिचय देता है । प्रथम घटना राष्ट्रकूट वंशका पराभव और अन्तिम राजा कक्कलका रणक्षेत्रमें मारा जाना । दुसरी घटना अपराजितका स्वतंत्र होना है। प्रथम घटनाके पूर्णतः सत्य होनेमें हमें महती शंका है। हमारी इस शंकाका कारण यह है कि चौलुक्यराज तैलपदेवका, अधिकार राष्ट्रकूटोंके समस्त राज्यपर हो गया था । हमारी इस धारणाका समर्थन इस बातसे होता है कि जब पाटन पति मूलराजने राष्ट्रकूटवंशके पराभव से लाभ उठानेके विचारसे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034491
Book TitleChaulukya Chandrika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyanandswami Shreevastavya
PublisherVidyanandswami Shreevastavya
Publication Year1937
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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