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________________ १६७ [ लाट वासुदेवपुर खण्ड मेस्तुगाचार्य के कथन का भावार्थ देने पश्चात गझेटीभर कार इस पृष्ट के पाद टीपनी में कालवेणी के संबंध में निम्न प्रकार से लिखते हैं। Foot Note: This is the Kaveri River which flows through Chikhali and Bulgar. The name in the text is very like Karbena the name of the same river in Nasik cave inscriptions (Bom. Gaz. XVI. 671). Kalveni and Karbena being Sanskritised forms of the original Kaveri. प्रस्तुत पाद टीपनी में कलवेणी का अभिन्नत्व सिद्ध करने के साथ ही एक तीसरा नाम करवेणा नासिक के लेखानुसार प्रगट करते हैं । यदि हम यहां पर नासिक शिला लेखका अवतरण देवे तो असंगत न होगा । अतः उक्त लेख के उपयुक्त अंश का अवतरण देते हैं। १-"सिद्ध राज्ञः क्षहरातस्य क्षत्रपस्य नहपानस्य जामाना दीनीक्पुत्रेण उषवदत्तेन त्रीगो शत सहस्रदेन नद्या वर्णासायां सुवर्ण दान तीर्थकरेण देवताभ्य ब्राह्मणेभ्यश्व षोडशग्रामदेन अनुवर्षमू ब्राह्मण शत सह भोजायित्रा" २-"प्रभासे पुण्यतीर्थे ब्राह्मणेभ्य अष्टभार्या प्रदेन भरुकच्छे दशपुरे गोवर्धने सोपारगे च चतुशाला वसध प्रतिश्रये प्रदेन आरामताडाग उद्पान करेण इवा पारदा दमण तापी करवेण हहनुका नावापुन्य तरकरेण एतायां च नदिनाम् उभय तो तीरं सभा ३–प्रपाकरेण पिडित कावडे गोबर्धने सुवणं मुखे शोपारगे च रामतीर्थ चरक पर्शभ्य ग्रामे नान गोले द्वात्रीशत नालीगेर मुल सहस्त्र प्रदेन गोवर्धने श्रीरश्मिषु पर्वतेषु धमात्मना इदं लेनं कारितं इद इमा च पोढिो । . इस लेख के पर्यालोचन से प्रकट होता है कि इहरातवंशी क्षत्रप नहपान के जामात्रा दिनिक पुत्र धर्मात्मा उषवदत्तने-जिसने वर्णासादी म घाट बनाकर सुवर्णान दिया था-प्रत्येक वर्ष एक लक्ष ब्राह्मणों को भोजन कराता था-प्रभास क्षेत्र में आठ ब्राह्मणों का विवाह कराया थाभृगुकच्छ में धर्मशाला बनवाया-दशपुर में बगीचा-गोवर्धन में तलाव-सुपार्ग में कुवा-इवपारदा-दमण-तापी-करवेणा और दाहनुका नामक नदिओं के ऊपर नावका पुल बना यात्रिओं को निःशुल्क नदी उतरने का मार्ग प्रशस्त किया । एवं इन नदिओं के दोनों तटों पर धर्मशाला और Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034491
Book TitleChaulukya Chandrika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyanandswami Shreevastavya
PublisherVidyanandswami Shreevastavya
Publication Year1937
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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