SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 285
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १६५ [ लाट वासुदेवपुर खण्ड अतः उक्त नगर को पुरातन बांसदा नगर मान लेनेसे सारी आपत्तियां अपने आप टल जाती है। परन्तु उक्त स्थान के साथ नवानगर विशेषण और विष्णु मन्दिर का प्रभाव प्रकट करता है कि उक्त स्थान प्रशस्ति कथित वासुदेवका रूपान्तर नहीं हो सकता। क्योंकि नवानगर विशेषण किसी दूसरे पुराणे नगर का अस्तित्व द्योतन करता है । और साथ ही उक्त स्थानमें विष्णु मन्दिर न हो कर शिवमन्दिर आज भी उपस्थित पाया जाता है । किन्तु प्रशस्तिके बांसुदेवपुरमें विष्णु मन्दिर का होना अत्यन्त आवश्यक है । इसका सामाधान यह है कि बासुदेव के समीप में किसी राजा ने उपनगर वसाया होगा जो नवानगर के नाम से विख्यात हुआ होगा । संभवतः उपनगर वसाने वाले राजा ने अपना निवास वहां पर बनाया हो। और उसके निवास के कारण नवानगर अधिक प्रसिद्धि प्राप्त किया हो । पेसी दशा में नवा नगर के समीप ही किसी पुरातन नगर का अवशेष हना चाहिए | नवा नगर से कुछ दूरी पर कावेरी नदी के दुसरे तट पर आज भी मन्दिर और मकानो का अवशेष पाया जाता है । उक्त स्थान को १०० राणी की देहरी कहेते हैं । उसके अतिरिक्त नवा नगर और वर्तमान बांसदा के मध्य में वासीयातलाव नामक गांव है । इन सब बातो को लक्ष कर नवा नगर बांसदा को ही प्रशस्ति कथित बासुदेवपुर का अवशेष मानते हैं। इतना होते हुए भी हम न तो नवा नगर बांसदा अथवा उसके समीप वर्ती वासीयातलाव को प्रशस्ति कथित बांसदा मान सकते हैं । क्यों कि जिस प्रकार वर्तमान बांसदा कावेरी नदी के तटपर बसा है उसी प्रकार नवा नगर बांसदा भी है। प्रशस्ति कथित बासुदेवपुर का परिचायक अम्बीका नदी वेणुकुन्ज है । जिसका बांसदा के साथ शशाशृंगवत् है । प्रशस्ति के श्लोक संख्या २० काऔर पूर्वार्ध"अम्बीका कुलसन्योरसुवेणुकुन्जसमन्विते" है।इसवाक्याके उत्तरार्ध "सुवेणु कुन्ज समन्विते 'के संबन्ध में कोई मतभेद नहीं है। परन्तु पूर्वार्थ 'अम्बीका कुल सन्यो' के संबन्ध में कुछ संदेह को स्थान मिलता है। क्योंकि उसमें से जबतक "अम्बीका कुल" और 'सन्यों': दोनों को भिन्न पद नहीं मानते तबतक 'अम्बीका नदीके तटपर' ऐसा अर्थ नहीं हो सकता। और ऐसा अर्थ करनेके लिये 'अम्बीकाकुल'को 'सन्यों से विभाजित करते ही 'सन्योः ' निर्थक होजाता है। अतः हमें 'अम्वीकाकुलसन्यों' को समासांत द्विवचन पद मानना होगा । इसे द्विवचनान्त पद माननेसे इसका अर्थ "अम्बीका कुलसनी' और इसको 'सुवेण कुन्ज समान्विते,"के साथ मिलानेसे अर्थ होगा 'अम्बीका कुलसनी के सुन्दर वेणु कुन्ज में' जिसका भावार्थ होगा कि अम्बीका और कुलसेनी नदियों के मध्य सुन्दर वेणु कुन्ज में । अतः प्रशस्ति कथिझ बासुदेवपुर अम्बीका के तटदर नहीं वरण अम्बीका और कुलसणी के मध्य वेणु कुन्ज में बसा था । अतः हमें प्रशस्ति कथित बासुदेवपुर का यथार्थ परिचय पाने के लिये 'कुलसनी नदी का परिचय प्राप्त करना होगा । अम्बीकाके दोनों पाश्र्वो पर बहने वाली नदियां मासरी कोस और औलाणा है इनमें झासरी और कोस अन्बीका के वाम पार्श्व और ओलाण दक्षिम पाव में बहती है। इन तीनों नदियों में से कोई भी ऐसी नहीं जिसे हम' कुलसनी' का Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034491
Book TitleChaulukya Chandrika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyanandswami Shreevastavya
PublisherVidyanandswami Shreevastavya
Publication Year1937
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy