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________________ [ लाट वासुदेवपुर खण्ड १६३ २०० और वासदाका उर्दू लिपि में लिखने पर इतनाकम अन्तर होगा कि विना सुक्ष्म विचारके उक्त अन्तर परखा नहीं जा सकता । पुनश्च बासदाका वासद नामसे अभिहित होने का हमारे पास लगभग वर्ष का प्रमाण । सन १६७० के मराठी पत्र में वासदा का उल्लेख वासदे नाम से किया गया है । परंतु वर्तमान बांसदा नगर को प्रशस्ति कथित वासुदेवपुर का अवशेष होने के संबंध में अनेक बाधाए विकराल रूप धारण कर सामने खड़ी है। प्रथम वाधा वांसदा का अवस्थान है क्योंकि बांसदा कावेरी नामक नदी के कुलमें बसा है। दूसरी बाधा बांसदा की नवीनता । वर्तमान बांदा नगर के निर्माण का सूत्रपात सन् १७७५-७६ के मध्य महारावल वीरसिंह ने किया था । इसके विपरित प्रशस्ति कथित वासुदेवपुर का निर्माण आज से लगभग ५६६-६७ वर्ष पूर्व होना चाहिए क्यों कि इसके निर्माता भीमदेव का राज्यारोहण लगभग संवत १३६४ विक्रम में हुआ था । वर्तमान वांसदा नगर को प्रशस्ति कथित वासुदेवपुर का अवशेष या रूपान्तर होने के प्रतिकुल उद्भावित शंकाद्वय के प्रतिहार में हम प्रवृत्त होते हैं और प्रथम शंका अर्थात् सदा चीता संबधी आपत्ति का समाधान करते हैं । यह बात ठीक है कि - मान बांसाका निर्माण बांसदा की परंपरा के अनुसार लगभग १५६ वर्ष पूर्व हुआ था । इसका समर्थन मराठी एतिहासिक लेखोंसे भी होता है । परन्तु साथही बांसदाकी परंपरा से यह भी प्रगट होता है कि वासदाका निर्माण वर्तमान वासदा नरेश श्रीमान् महाराजा श्रीइन्द्र सिंहजी से २७ वीं पुस्तपूर्व होने वाले वसन्त देव के पुत्र वीरमदेव ने किया था । एवं बांसदा वालों को दिल्ही के सुल्तान अलाउदीन खिलजी से मान प्राप्त हुआ था । पुनश्च बांसदा की परम्परा से प्रगट होता है। कि वर्तमान बांसदा बसाये जाने के पूर्व बांसदा की राज्यधानी नवा नगर में थी । उक्त स्थान बांदा से दो मील की दूरी पर है। जहां पर पुरातन नगरका अवशेष आज भी पुरातन बांसदाका गौरव द्योतन करना है । एवं मराठी लेखों से बांसदा की राजधानी में गोमुख और कर्दमेश्वर का होना सिद्ध है । ये दोनों स्थान वर्तमान वासदा में नहीं नवानगर में आज भी टूटी फूटी अवस्था में दृष्टिगोचर होते हैं । अब यदि बांसदा नगर बसाने वाले, २७ वीं पुस्त में होने वाले, बीरमदेव का समय निकाला जाय तो वह कम से कम आज से ५२० वर्ष पूर्व होगा । वर्तमान महाराज इन्द्रसिंहजी का राज्यरोहण सन् १९११ में हुआ था । अतः हमें सन १६११ में से ५२० को घटाना न पडेगा । इस प्रकार बांसदा का अस्तित्व ई. स. १३६१ तदनुसार संवत १४४८ विक्रम में चला जाता है । इसके अतिरिक्त पारसियों के इतिहास से बांसदा या वांसदो नामक राज्यका अस्तित्व - ४०० वर्षके पुराणे लिखित ग्रंथ के आधर पर विक्रम संवत १४८४ तदानुसार इस्वी १४२७ के पूर्व चला जाता है। इससे भी सिद्ध होता है कि वर्तमान बांसदा नगर कथित बांसदा राज्य की राज्यधानी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034491
Book TitleChaulukya Chandrika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyanandswami Shreevastavya
PublisherVidyanandswami Shreevastavya
Publication Year1937
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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