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________________ समान निवास करता था । २६ ॥ .:चानक सप्लव उपस्थित हुआ चासन्तदेव बुद्ध में मारा गया । भरातियो ने सर्वच सिसार वासही मैक। २७ - - * मेक अभिषेक का संवाद पाकर जिस प्रकार सात अर्थात यो निवासी अनिन्दित भोर राम के बर्मवास की बातें सुनकर मूर्षित ही पैका २६॥ * . उसी प्रकार चौलुक्य चन्द्र के खास उपस्थित होने पर वसन्तपुर निवासीयीकी दशा हुई थी। जब संकुल का समाधान हुआ तो रामदेव वासुदेवपुर में चले आ PET का बासुदेवपुर में आने के पश्चात् रामदेव उपनाम वीरदेव ने अपनी प्रजा पुरजन तथा पुत्रों और परिजनों को बुलाकर-कृष्णदेव को कार्मण्य और महादेव को मधुपुर ।। ३०॥ . और कीर्तिदेवको पार्वत्य यमक विषय दिया । एवं पौत्रको राज्य, सिंहपमत पर मि. कोक को प्रयास किया ॥ ३१॥ ... ........ .....* . वीरदेव अपने सदा से सायः प्राप्त कर प्रजा पालन में हुमागीय के बोल नाई यह प्रशस्ति माला का निर्माण ॥ ३२ ॥...... .... . शंकरानन्द के शिष्य बुद्धिमान कृष्णानंद ने किया। चार-चारमंस चार सौ से अप " "श्रावण शुक्ल द्वादशी के दिन साय काल में कथित विक्रम संवत की शुभ तिथि में पर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034491
Book TitleChaulukya Chandrika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyanandswami Shreevastavya
PublisherVidyanandswami Shreevastavya
Publication Year1937
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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