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________________ [लाट वासुदेव खण्डं सिद्धराज के पश्चात पाटकी गदी पर कुमारपाल बैठा । इसका स्थानक के शिहरा मल्लिकार्जुन के साथ युद्ध हुआ था । युद्ध में प्रथम मल्लिकार्जुन ने पाटनकी सेना को पराभूत किया परन्तु ऋत में उसे हारना पडा । यह युद्ध विक्रम संवत १२१७ में हुआ था ! संभवतः मंगलपुरी वाले मल्लिकार्जुन के साथ मिल कर पाटण वालों से लडे और उसके पराजय के साथही उन्हें अपने राज्य से हाथ धोना पडा था । वसन्तदेवका राज्यारोहन समय हम विक्रम संवत ११६३ में बता चुके है । अतः औसत के अनुसार इसका अन्तकाल इस युद्ध के दो वर्ष पूर्व ठहरता है । संभवतः उसके मरने पश्चात उसके सार्वभौम राजा पाटण वालो ने उसके पुत्र को महा सामन्त की उपाधि के स्थान में केवल सामन्तकी उपाधि धारण करने के लिए बाध्य किया हो। हमारी समजमें कुमारपाल ने मंगलपुरीकी राज्य लक्ष्मीका अपहरण किया था। उसकी मृत्यु पश्चात जब पाटण की शक्ति क्षीण हुई तो वीरसिंह ने विक्रम १२३५ में पुनः अपने वंशके राज्यका उद्धार कर बसन्तपुरको अपनी राज्यधानी बनाया। कुमारपालकी मृत्यु १२२६ में हुई। उसके बाद उसका भतीजा अजयपाल गद्दी पर बैठा । इसने केवल तीन वर्ष राज्य किया । पश्चात वल मूलराज पांचवर्षकी अवस्था मे संवत १२३२ मे गढ़ी पर बैठा । २ वर्ष राज करने के पश्चा उसकी मृत्यु हुई और १२३५ में भीम द्वितीय गद्दी पर बैठा । उसकी अल्पवयस्कतासे लाभ उठानेके लिये कोकरण वालों आक्रमण किया जिसको लवणप्रसाद ने अपनी बुद्धि बल से शान्त किया था । अतः हमारी उस अवसर से लाभ उठाकर वीरसिंग ने अपने राज्यका उद्धार किया होगा । १३७ समझ हमारी समझ में शासन पत्र कथित घटनाओं के ऐतिहासिक तथ्यका पूर्ण रूपेण विवेचन हो चुका | केवल मा प्रदत्त ग्राम वालखिल्यपुर और उसकी सीमा पर अवस्थित ग्रामोंका वर्तमान समय में अस्तित्व है अथवा नहीं विचार करना है। शासन पत्र कथित वालखिल्य पुर के दक्षिण मे पूर्णा नदी है । गायकबाडी राज्य के व्यारा तालुका मे पूर्णा के उत्तरमे वालपुर नामक ग्राम है । यह ग्राम अति पुरातन है। इसके चारों तरफ मिलों मकानों और मनदरों के ध्वंश पाये जाते है । इस गाम में एक पुराने शिव मन्दिरका ध्वंस है जिसके समीप एक शीतल जल का कुण्ड हैं। इस मन्दिर और कुण्ड को मंप्रति वालपुर का कुण्ड और वालकेश्वर महादेव कहते हैं । परन्तु वर्तमान मन्दिर में तीन भिन्न लेखों के पत्थर एक साथ लगाए हुए हैं। इससे प्रगट होता है, कि विक्रम १६३७ में व्यारा ग्राम के देशाई कामेश्वर मन्दिरका जिर्णोद्धार किया था अथवा बनवाया था । परन्तु वह मन्दिर संप्रति टूट गया है । और उसका पत्थर वर्तमान मन्दिर में लगाया गया है। अतः सिद्ध होता कि कुण्डके पास कदमेश्वर का मन्दिर था। इस हेतु हम कह सकते है कि शासन पत्र कथित कदमेश्वर महादेव और हृदतथा वालखिल्यपुर यही स्थान है । वालपुर से पश्चिम खुटरिया नामक ग्राम है । जो संभवतः शासन पत्र कथित खटवागका परिवर्तित रूप है । एवं बलपुर के उत्तर करजा नामक ग्राम है जो शासन पत्र का करंजावली प्रतीत होता है । अन्तोगत्वा पूर्व में विका नामक ग्राम है। जो अम्बिका का रूपान्तर ज्ञात होता है। शासन पत्र के लेखक और दूतक श्रादिका नाम दिया गया हैं और संभवत: सभी बा दीगई हैं किन्तु वालखिल्यपुर किस विषयका ग्राम था इसका उल्लेख न होना इसकी भारी त्रुटि हैं! दानफल और अपहरणादिका दोष साधारण बातें हैं इनके लिये कुछ कहना अनुपयुक्त हैं 1 Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034491
Book TitleChaulukya Chandrika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyanandswami Shreevastavya
PublisherVidyanandswami Shreevastavya
Publication Year1937
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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