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________________ [ लाट वासुदेवपुर स्व नवी तड़पन का है। यह गोकाक नामक नगरसे ५ मील पश्चिमो र तथा वेलगांव से गमग ३० मील उत्तर में है । यह लेख कोम्बे रायल एसियाटिक सोसायटी के जर्नल बोल्युम १० पृष्ट २८० में पाली संस्कृत और पुरातन कनाडी लेख संख्या ६३ के नामसे छपा है। इस लेख से प्रकट होता है क्रि रहबशी महा मण्डलेश्वर कान्ह द्वितीय उक्त वर्षमें विक्रमादित्य के पुत्र जय वर्ण के सामन्त रूपसे इन्ही प्रदेशका शासन करता था । हमारे पाठकों को ज्ञात है की कुन्डी प्रदेश वीरनोलम्ब जयसिंहको अपने पिता ध्याहूवल्ल सोमेश्वर से शक ६७६ में मिला था । अतः अब विचारना है कि जब उक्त प्रदेश जयसिंह को अपने पिता से मिला था तो वह विक्रमादित्य के पुत्र जय कर्णके अधिकारमें क्योंकर चला गया। क्या विक्रमने कुन्डी प्रदेश शक १००६ के पूर्व हीं छीन लिया था। हमारी समझमें इन प्रश्नों का उत्तर देने के पूर्व हमें कुन्डी के रट्ठों के जिनकी राज्यधानी सुगन्धावती (सादन्ती) थी इतिहासका पर्यालोचन करना होगा । सुगन्धों के इतिहास पर दृष्टिपात करने से प्रकट होता है कि इन्होंने लगभग ३५० वर्ष यहाँपर शासन किया है। इनके शासनकी कथित ववधि तीन भागों में बटी है। प्रथम शक ७६६ से ८६५ पर्यन्त लगभग एक सौ व द्वितीय शक ८६५ से १०६२ पर्यन्त लगभग १६ व तृतीयक २०६२ से १९४७ पर्यन्त लगभग ५ वर्ष है। प्रथम अवधि पुगन्धवती के रठ्ठे मान्य के राष्ट्रकूटों के सामन्त और द्वितीय अवधि में चं. लुक्योंका राज्य छिन जाने बाद यंत्र हो गये थे। इन्होंने लगभग ५५ वर्ष स्वातंत्र्य सुखका भोग किया अनन्त र देवगिरी के यादवों ने इनकी राज्यलक्ष्मी के अपहरण के साथही संसारसे इनका अस्तित्व मिटा दिया । . No हमारा संबंध सुगन्धावतीके द्वितीय अवधि से है। अतः अत्र विवारना है कि चौलुक्यों के साथ इनका किस प्रकारका सम्बन्ध रहा है। विवे वनीय काल शक १००६ पर्यन्त चौलुक्य के किस राजा के समय कौन रठ्ठे सामन्त था । लुक्य अ र रट्ठ वंशके इतिहासके पर्यालोचन से प्रकट होता है कि शक संवत ६०२ में चौलुक्य राज्यके उद्धारक तैलप द्वितीयका सामन्त रवंशी शान्त और उसका वंशज कंठन सामन्त था एवं इस समय के ६८ वर्ष पश्च त शक ६७० सर्वाधिकारी नामक संवत्सरमें रहवंशी पूर्व कथित शान्त के बंश अनकको च लुक्य राजे आहवमलले सोमेश्वर प्रथमक सामन्त पाते है। इस समय से केवल ६ वर्ष बाद शक ६७६ जयनामक सर्वोसर में बीरनोलम्ब जयसिंहको कुन्डीकी जागीर अपने पितासे मिलती हैं और रहवंशी मानकको मोह मल और जयसिंह पिता पुत्र दोनों का सामन्त पाते हैं । सुगंधावतीके प्रायः विना तिथि के लेल से जयसिंहके ज्येष्ठ भ्राता सोमेश्वर भुवनका सामन्त आनको पाते हैं। सोमेश्वर भुवनका राज्यकाल शक० से ६६८ पर्यन्त है । पुनञ्च शक १००८ में आनकके वंशज कान द्वितीय को विक्रमादित्यका सामन्त पाते हैं और अन्ततोगत्वा शक १००६ में रहवंशी कान द्वितीयके भाई कठ द्वितीयको चालुक्य विक्रम के पुत्र जयकर्णका सामन्त पाते हैं। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034491
Book TitleChaulukya Chandrika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyanandswami Shreevastavya
PublisherVidyanandswami Shreevastavya
Publication Year1937
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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