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________________ ११३ लाट नन्दिपुर खण्डे मगलपुर वसन्तपुर प्रशस्ति छाया नुवाद। प्रस्तुत शासन पत्र संघाद्रि उपत्यकामें मंगलपुरी नामक नवीन चौलुक्यराज संस्थापक श्री वीजयसिंहदेव केसरी विक्रमका शासन पर है। यह छव भागोंमे बटा है। प्रथम अंशसे लेकर पांचवे अंश पन्त शासन पत्र गयो है । छठेका अंतिम भाग गद्य और शेष पद्य है । प्रथम अंशका प्रारंभ स्वस्ति से किया गया है। अनन्तर वाराहकी स्तुति आर चौलुक्यों की परंपरागत रूढी दी गई है। पश्चात् वैशावलीका प्रारंभ होता है । वंशावलीमें शासन कर्ता पर्वतकुल चार नाम हैं और उनका क्रम निम्न प्रकारसे है । जय सिंह सोमेश्वर जय सिंह वि ज य सिंह जयसिंह प्रथमका बिरुद बातापि नाथ और महाराजाधिराज परमेश्वर परम भट्टारक है। उसी प्रकार सोमेश्वरका विरुद परम भट्टारक महाराजधिराज परमेश्वर और नामान्तर अहवमल है। परंतु शासन कर्ता के पिताके नामके साथ बहुत लम्बा चौडा विरुद दृष्टिगोचर होता है। एवं उसका नामान्तर सिंहणं प्रकट होता है। उक्त विरुद प्रलोक्यमल्ल विरनोलम्ब पल्लवमर्दी तालाब वाडी पोलबिन्दु शान्तलवाडी वेलवला पुलगिरि वासवली नाथ और वनवासी युवराज है। इस मिला हरिणत करनेसे प्रकट होता है कि विरुवावली तीन भागोंमें बटी है। प्रथम भागमें प्रोकमास वीरनोलम्ब पल्लवमी, द्वितीय भागमें तालदवाडी पोलविन्दु सान्तलवाडी वेलवेला पुलगिदि वासपकी नाथ और तृतीय भागमें केवल वनवासी युवराज है। इस सम्बे चौडे विहदका न तो अर्थ और न कारणही हमारी समझमें आता है। प्रथम भाग पिलदोंके सबको हम कह सकते हैं कि वे गुणवाचक है। परन्तु द्वितीय भागके विरुद प्रशीत होते हैं। और उन देशोंके साथ जयसिंहका संबंध प्रकट करते हैं। यदि वास्तवमें वे देशवाचक है तबतो कहना पडा कि जयसिंहके अधिकारमें एक बहुत बड़ा भूभाग था। परन्तु Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034491
Book TitleChaulukya Chandrika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyanandswami Shreevastavya
PublisherVidyanandswami Shreevastavya
Publication Year1937
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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