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________________ चौलुक्य चंद्रिका ] तुम्बरहोसरुग्राममें इमलीकेनीचेवाली शिला प्रशस्ति नमस्तुग स्वस्ति समस्त भुवनाश्रय श्री पृथिवी वल्लभ महाराजाधिराज परमेश्वर परम भवारक सत्याश्रय कुल तिलकं चौलुक्याभरणं श्रीमत् त्रिभुनमल्ल देवर विजय राज्य उत्तरोत्तराभि वृद्धि प्रर्वद्धमान पाचन्द्रार्क तारावरं सातुत्तमिरे । तस्यानुज वृत्त ॥ विनायक पासपदं भादविकृमं नोलम्ब विकृमादित्य दे। बन चिसक्क अवलम्ब आव कालेयं चौलुक्य राम क्षिति। शान कोड एरिद कुरम्मे वेत अनुग दम्म राय कन्दर्प दे। वन सम्मोहन पूर्ववानं एनल इन्न एवनियं बनायं। यो युत इलदायुद इनं दहले हिम नगरारण्यमं लाहन इन्नम्। पुगती एन्द इल्दायं इन्नं नेलसादे तीवुलं लंकेया तेन्कल मोदल। पाजेयुरा इल्वायं इननं मुलीदायन एनुतुं कोन्कनं सन्केपी गुन। दुगोलुत्त इल्दायुद एवल्लीदनो चकित विद्वित कदम्पं नोलम्बं॥ वचन ॥ एनिसिदा समस्त भुवन संस्तूयमान लोक विख्यात पल्लवषय श्री मही वल्लभं युवराज राज परमेश्वरं वीर महेश्वरं विक्रमाभरणं जयलक्षमी रमण शरणागत रक्षामाणि चौलुक्यचूडामाणि करन त्रिनेत्रं चत्रिय पवित्रं मत्तगजाहाराज सहज मनोज रिपुराय कटक सरेकारण मन्नन प्रकार श्रीमरा त्रयलोक्यमल्ल वीरनोलम्ब पल्लव परमनापि जयसिंह देवर ॥ वृरा। पुलिगेरी के रेय्युमले कासवलं वनवासे नादुखेल । बलं मोलगागी दक्षिण पयोधि वरं नेलन भावुद एक्लमम । खलरण इदिरोय सन्तोषदिन भरद प्रधिकं युवराज लक्ष्मीयम् । सले नेले तालदि सन्तं इरे विरनोलम्ब महामही भुजम् ॥ का॥ तत्पदज योप सेवा। तस्परान् प्रकलङ्क चरितान् उद्धृतरीपु भु। भूतपति दण्डाधिप सम्। परावति पतिकार्य साधक बालदेवं॥ पुरा। जिननायं स्वामी देवं पति सकल मही वल्लभ सिङ्गीदेवं । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034491
Book TitleChaulukya Chandrika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyanandswami Shreevastavya
PublisherVidyanandswami Shreevastavya
Publication Year1937
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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