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________________ [प्राक्कथन लाट का अभ्युदय तृतीय शतक। अब विचारना है कि भीनमालके गुर्जरोंका अभ्युदयकाल क्या हो सकता है। क्षत्रपवंशी रुद्रदामके विक्रम संवत २०० और २१५ के मध्यवर्ती लेखमें गुर्जर प्रदेश और गुर्जर जातिका उल्लेख नहीं है ! उसी प्रकार समुद्रगुप्त के विक्रम संवत ४२७ और ५४२ के मध्यवर्ती प्रयागवालेस्तम्भ लेखमें विवेचनीय गुर्जर जाति और गुर्जर देशका अभाव है। अतः हम विना किसी संकोच के कह सकते हैं कि भीनमाल के गुर्जरोंका अभ्युदय, जिनके नामानुसार वर्तमान गुर्जर प्रदेशका नाम करण हुआ है, विक्रम संवत ४४२ के पश्चात हुआ प्रतीत होता है। परन्तु इनके अभ्युदय कालको यदि हम विक्रम ४४२ से और आगे बढ़ाकर गुप्तों के अन्त समय विक्रम ५२७ तदनुसार इस्वी सन ४७० माने तो भी कोई आपत्ती सामने आती नहीं दिखाती । क्योंकि गुप्त साम्राज्य के पतन पश्चात भारत के भिन्न भिन्न प्रान्तोमें अनेक राज्यवंशोंका प्रादुर्भाव हुआ था। गुप्तों के सेनापति भट्टारकने वल्लभि में (सौराष्ट्र) मैत्रक राज्यवंशकी स्थापना की थी। संभवतः गुर्जरोंने भी गुप्त साम्राज्य के पतन रुपी गंगा की बहती धारामें स्नान कर अनयासही राज्य संप्राप्ति रुप पुण्यका संचय किया था। हमारी समझमें जबतक भीनमालके गुर्जर राज्य संस्थापनका परिचायक स्पष्ट प्रमाण न मिले तब तक गुर्जर जातिका अभ्युदय और गुर्जर प्रदेश के नाम करणका समय निश्चित रूपसे नहीं कहा जा सकता । तथापि तत्कालीन विविध एतिहासिक सामग्रियोंपर दृष्टिपात करने के पश्चात हम गुर्जर जाति का अभ्युदय काल विक्रम संवत ५२७ जो, गुप्त साम्राज्य का पतनकाल है, मानते हैं। पुराकालीन आनत प्रदेशका गुर्जर जातिके संयोगसे, गुजरात नामाभिधानका समयादि विवेचन करने पश्चात हम आनत और अपरान्त के मध्यवर्ती भूभाग के लाट नामाभिधान के विवेचनमें प्रवृत्त होते हैं। जिस प्रकार गुजरात देशका नाम भारतीय पुराण, रामायण और महाभारत आदि एतिहासिक ग्रंथोमें नहीं पाया जाता उसी प्रकार लाट देशका नामभी इन ग्रंथों में देखने में नहीं आता। हाँ लाट देशका उल्लेख विक्रम संवत के तृतीय शतक से लेकर १३ वें शतक पर्यन्त के विविध ताम्रपट और शिलालेखों तथा संस्कृत एतिहासिक काव्यादि में पाया जाता है। कामसूत्रके कर्ती वात्सायनने अपनी पुस्तकमें सर्व प्रथम लाट प्रदेशका 0 पनी पुस्तकर्म सर्व प्रथम लाट प्रदेशका Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034491
Book TitleChaulukya Chandrika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyanandswami Shreevastavya
PublisherVidyanandswami Shreevastavya
Publication Year1937
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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