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________________ २७ [ लाट वासुदेवपुर खण्ड लिये ढाल । मनुष्यमें जब तक एकवाक्यता न होगी वह अपने शरणागतकी रक्षा कदापि नहीं कर सकता। उक्त गुणोंसे वञ्चित मनुष्यको शरणागत मनुष्यकी रक्षा करनेमें जहां कुछभी आपत्तिकी भनक मिली नहीं की उसने उसको उसके शत्रुओंके आधीन किया। यह मानी हुई बात है कि शरणगतकी रक्षा करने में अपने प्राणों बाजी लगानी पड़ती है। प्रशस्ति जयसिंहका वर्णन करने पश्चात् उसके सामन्त मंगीया इच्छाया कोदयुर निवासी का उल्लेख करती है। मंगीय इच्छाया सूलगल संप्तति का शासक और उसका महा सामन्त था । प्रशस्तिकारने मंगीय इच्छाया के विशेषणों के वर्णन करनेमें पाण्डित्यका प्रचूर रूपेण परिचय दिया है। उसके विरुद के संबंधमें लिखना अनावश्यक मान हम आगे बढ़ते हैं। प्रशस्ति का उद्देश्य मंगीय इच्छाया कृतदानका वर्णन है। मंगीयाने सूलगलके भीमेश्वर और हिडम्बेश्वर नामक मन्दि रोंके लिये जप नियम स्वध्याय निरत ज्ञानशिवको १०० मातरभूमि दिया है। प्रस्तुत भूमिकी सीमा प्रभृतिका वर्णन करने पश्चात प्रशस्ति भूमिदान के फल और अपहरण जन्य पापादि का वर्णन करती है । परन्तु अन्यान्य शासन पत्र और शिला लेखों समान प्रचलित फलाफल कथन करनेवाले व्यास के नामसे प्रचलित श्लोक के स्थान में नवीन श्लोकोंको प्रशस्ति ने अपने गोद में स्थान दिया है। यद्यपि ये श्लोक भिन्न हैं तथापि इनके भाव प्रचलित श्लोको के समानही है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034491
Book TitleChaulukya Chandrika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyanandswami Shreevastavya
PublisherVidyanandswami Shreevastavya
Publication Year1937
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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