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________________ श्री वीर नोल्ब जयसिंह की जतिग रामेश्वर प्रशस्ति विवेचन । प्रस्तुत लेख वीरनोलम्ब पल्लव परममनादि त्रैलोक्यमल्ल जयसिंह के दानका शासन है। यह लेख २ १/२४२ १/३ फीट प्रस्तर पर उत्कीर्ण है। उक्त प्रस्तर जतिग रामेश्वर मन्दिर के पृष्ट प्रदेश में है। अर्थात जतिग रामेश्वर मन्दिर एक प्राचीन मन्दिर है जो शक ८८४ में बनाया गया था । मन्दिर जतिग गिरि नामक पर्वत पर बना है । उक्त गिरि समुद्र तलसे ३४६६ फीट उंचा है। और चितलदुर्ग जिला (मयसूर राज्य) के सिदापुर ग्राम के समीप है। ... प्रशस्तिकी लेख पंक्तिया १४ हैं। लेखकी लिपि हाले कनाडी और भाषा संस्कृत तथा कनाडी मिश्रित है। प्रशस्तिके पर्यालोचनसे प्रकट होता है कि जयसिंह जब नोलम्बवाडी का शासन करता था तो गोदावाडी प्रामके बाहर अपनी चमुमें निवास करते समय बालगोती तीथके रामेश्वर नामक शिव मन्दिरके भोगाराग निवाहार्थ कानीयाकल तीन सौ विषयके वानेकल प्रामको चढ़ाया था। कथित दानकी तिथि नव चंद्र बुधवार फाल्गुण मास विरोधिकृत संवत्सर शक ९६३ है। उक्त तिथि बुधवार ३१ मार्च सन १०७२ के बराबर है। यह समय सोमेश्वर द्वितीय के राज्य काल में है। क्योंकि उसका समय शक ६६० से ६६८ तदनुसार ईस्वी सन १०६८ से १०७६ पर्यन्त है। प्रशस्तिके पर्यालोचनसे जयसिंह के अन्यान्य विरुद के साथ "अनन सिंह" विरुद प्रकट होता है। अनन सिंह कनाडी भाषा का शब्द है। इसका अर्थ अपने बडे भाइका सिंह होता है। अतः हम कह सकते है कि जयसिंह अपने बड़े भाई सोमेश्वर द्वितीयके आधीन था । प्रशस्ति में जयसिंहको परम महेश्वर कहा है इससे प्रकट होता है कि वह शिवका अनन्य भक्त था । एवं प्रशस्ति कथित “ पल्लवान्वय" का विचार पूर्वोक्त प्रशस्ति में पूर्ण रूपेण कर चुके है। अतः यहां पर इसके संबंध में कुछ भी लिखना पिष्टपेषण मात्र है। प्रशस्ति से प्रकट होता है कि जयसिंह ने प्रशस्ति कथित दान उस समय दिया था जब पागोन्दावाडी शिवीर के समीप में निवास करता था। शिवीर अथवा उसके समीप निवास Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034491
Book TitleChaulukya Chandrika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyanandswami Shreevastavya
PublisherVidyanandswami Shreevastavya
Publication Year1937
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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