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________________ चौलुक्य चंद्रिका) ५८ करुण का करण रूप परिवर्तित हुआ है। इस रूप परिवर्तनकी क्रिया में किसि प्रकारकी आशंका का समावेश नहीं हो सकता। हां पूर्व और आग्नेय दिशावर्ती ग्रामों के वर्तमान परिचय संबंध में हम सशंक हैं । तथापि आठ सीमावर्ती ग्रामों में से 2 का निश्चय ज्ञान होने पश्चात हम निःशंक हो कर कह सकते हैं कि प्रशस्ति कथित एरथाण ध्रुव महोदय कथित ओलपाड तालुकावाला एरथाण न होकर बडोदा राज्य के नवसारी प्रान्त के तालुका पलशाणा का एरथारण ग्राम है। हमारी समझमें प्रशस्ति कथित सब वातों का विवेचन हो चुका । अतः यदि हम इतने ही से अलं करें तो असंगत न होगा तथापि ध्रुव महोहय के पूर्व अवतरित कथन में एक बात ऐसी है जिसके संबंध में कुछ कहे बिना विवेचन को समाप्त करने का साहस हम नहीं कर सकते । ध्रुव महोदय ने अपने कथनमें महलेरुना टेकरा का उल्लेख कर अपनी पूर्व कथित संभावनाका समर्थन करनेका प्रयास किया है। और उद्धृत अवतरण के पूर्व शासन कता के वंशकी राज्यधानी संबंधमें लिखते हैं। "Trilochanpal bathes in the western Sea at the Port of Agast Tirth and makes the grant from which I conclude that it or some place near it was most probably the Capital of the Monarch." "त्रिलोचन पश्चिम समुद्र तटवर्ती अगस्ततीर्थ में स्नान कर दान देता है। इससे हम परिणाम पर पहुंचते हैं कि कदाचित अगस्त तीर्थ अथवा उसके समीपवर्ती कोई ग्राममे इस राजा की राज्यधानी थी।" अब यदि ध्रुव महोदय के कथनको, महेल्लेरुना टेकरा वाले कथनके साथ मिलाकर पढ़ें तो उनके आन्तरिक भावका परिचय अनायासही मिल जाता है। अन्यथा महेल्लेरुना टेकरा का उल्लेख कथित विवरण में अप्रासंगिक तथा 'सिन्दूर बिन्दु विधवा ललाटे' विधवा के ललाटमें सिन्दूर की टीका के समान असंगत प्रतीत होता है। हमें खेदके साथ कहना पड़ता है कि त्रिलोचनपालके पूबजोंके इतिहासको ध्रुव महोदयने पूर्ण रूपेण पटतर किया है। अन्यथा वे इनकी राज्यघानीको भगवा दांडी या उसके समीपवर्ती महेल्लुरुना टेकरा में निर्धारित करनेका दुःसाहस न करते। हां हम यह अस्वीकार नहीं कर सकते कि इनकी राज्यधानीके संबंधमें विद्वानोमें घोर मतभेद नहीं है। परन्तुं उक्त मतभेद कुछभी महत्व नहीं रखता क्यों कि राज्यधानीका नाम नन्दिपुर सर्वमान्य है। यदि मतभेद है तो वह यह है कि नन्दिपुर भरुच नगरका उपनगर अथवा राजपीपला स्टेटका नादोद है। परन्तु हमारी प्रवृती भरुच के उपनगरको नंदिपुर माननेके स्थानमें राजापीपलाके नादेोदके : नंदिपुर मानने के प्रति अधिक झुकती है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034491
Book TitleChaulukya Chandrika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyanandswami Shreevastavya
PublisherVidyanandswami Shreevastavya
Publication Year1937
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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