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________________ [ लाट नन्दिपुर खण्ड चक्र २. In टेम्बरूक उत्तर इशान वायव्य वटुनाद पश्चिम नागम्बा और नंतिक एरथाण ऋत्य दक्षिण इन्द्रोत्थान वटपद्रक लिंगवटशिव दोनों सीमाचक्रोंपर दृष्टिपात करतेही ध्रुव महोदय के कथनकी अनर्गलता अपने आप प्रकट हो जाती है। अतः इसके संबंध में कुछभी कहनेकी आवश्यकता नहीं है। ध्रुव महोहय लिंगवटको सचीन राज्यका लिंगथरजा बताते हैं। अब यदि हम लिंगवटको लिंगथरजा मानें तो यह मानना पड़ेगा कि प्रशस्ति कारने एरथाणकी चतुःसीमाका वर्णन करते समय उसकी सीमा पर २०-२५ मील की दूरी पर होने वाले ग्रामोंको बताया है। ऐसा विचार करना भी हास्यास्पद है। परन्तु ध्रुव महोदयने क्यों ऐसा लिख दिया है यह हमारी समझ में नहीं आता । परन्तु उनके लेखके पर्यालोचनसे हमारी यह धारणा होती है कि उन्होंने लेख लिखते समय मानचित्रका विबेचन नहीं किया था। वरना वह कदापि ऐसा न लिखते। हमारी समझमें उनके लेखकी पूर्ण रूपसे अनर्गलता प्रकट करने के लिये वर्तमान एरथाण की सीमा पर होने वाले ग्रामोंका सीमाचक्र देना असंगत न होगा। वर्तमान एरथाण का सीमाचक्र निम्न प्रकार से है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034491
Book TitleChaulukya Chandrika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyanandswami Shreevastavya
PublisherVidyanandswami Shreevastavya
Publication Year1937
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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