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________________ चौलुक्य चंद्रिका] कारी हुआ होगा। परन्तु इस संभावनाका मूलोच्छेद शासन पत्र के वाक्य 'स्व बाहुबलोपार्जित राज्य' से होता है। क्यों कि विजयसिंह स्पष्ट रूपसे अपने बाहुबलके प्रताप से राज्य प्राप्त करनेक उल्लेख करता है। इस संबंध में हम कह सकते हैं कि जयसिंहकी मृत्यु पश्चात मंगलराज विक्रम ७४९ में गद्दीपर बैठा तो संभवत' बुद्धवर्मा से उसका मतभेद हो गया। और कदाचित उसने बुद्धवर्माकी जागीर के साथ कुछ छेड़छाड़ की हो। जिसका विजसिंह ने अपनी बाहुबलसे दमन कर अपने अधिकार की रक्षा की हो । अथवा वह भी संभव है कि विजय और मंगलराज का मतभेद हुआ हो। पैविक जागीर का अधिकार प्राप्त करने पश्चात विजयने किसी छोटे सामन्तको मार उसके अधिकार को अपने अधिकार में मिला अपने विजय के उपलक्ष में इस शासन पत्र को प्रचलित किया हो। हमारी समझमें यही यथार्थ प्रतीत होता है। किन्तु यह भी हम निश्चय के साथ कह सकते हैं कि शासन पत्र प्रचलित करते समय विजयका मंगलरज के साथ कुछमी संबंध नहीं था। वह पूर्ण स्वतंव था वरन उसके शासन पव में मंगलराज के नामोल्लेख के अभाव के स्थान में उसे अधिराज रूपसे स्वीकार किया गया होता। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034491
Book TitleChaulukya Chandrika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyanandswami Shreevastavya
PublisherVidyanandswami Shreevastavya
Publication Year1937
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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