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________________ [लाट नवसारिका खण्ड राजशिविर का स्थान विजयपुर-ब्राह्मणोंका प्रान जंबुसर घोर विवादका कारण हो रहा है। आज तक अनेक विद्वानों ने पक्ष विपक्ष में लेख लिखे हैं । किसी के मत से यह शासन पत्र बनावटी तो दूसरे के मतसे सत्य है। वास्तव में देखा जाय तो इस शासन पत्र कथित प्रामादि विवाद की वस्तु हैं क्यों कि शासन पत्र विजयपुर नामक ग्राम में अवस्थित राजशिबिरसे लिखा जाता है । यह जम्बुसर के ब्राह्मणों को दिये हुए भूमिदान का प्रमाण पत्र है अर्थात इसके द्वारा उक्त ग्राम के ब्राम्हणों को दान दिया जाता है। यह जंबुसर नामक स्थान से लगभग ५० मिल की दूरी से प्राप्त होता है । पुनश्च इसके प्राप्त होने के स्थान से विजयपुर नामक स्थान जिसके प्रति अद्यावधि विद्वानोंकी दृष्टि पड़ी है वह ७०-८० मिल से भी अधिक दूर प्रान्तिज नामक स्थानके समानान्तर पर लगभग २० मील की दूरी पर उत्तर पश्चिम में अवस्थित बीजापुर नामक ग्राम है। अब यदि देखा जाय तो इसके लिखे जाने के स्थान से प्रतिग्रहीता ब्राम्हणों के निवास स्थान की दूरी १२५-३० मील से भी अधिक है। परन्तु इस शासन पत्र को ब्राम्हणों के निवास स्थान तथा लिखे जाने के स्थान से कुछ दूरी पर मिलने के कारण बनावटी मानने वालोंने इस साधारण बात पर भी ध्यान नहीं दिया है कि शासन पत्र को जंबुसर नामक स्थान से कोई मनुष्य अपने साथ लेकर अन्य स्थान को जा सकता है । पुनश्च उन्होंने भरूच जिला के जम्बुसर नामक तालुका के ग्राम जंबुसरको ही शासन पत्र कथित जंबुसर मान लिया है। अब यदि इनके माने हुए जंबुसरको लेखका जंबुसर और बीजापुरको विजयपुर मान लेवें तो वैसी दशामें प्रश्न उपस्थित होगा कि क्या चौलुक्यों का अधिकार जंबुसर, खेड़ा और बीजापुर पर्यन्त था। इस प्रश्नका उत्तर हम दृढ़ता के साथ दे सकते हैं कि उनका अधिकार बीजापुर पर्यन्त नहीं था । हमारे इस उत्तर का कारण यह है कि यह सर्व मान्य सिद्धांत है कि प्रस्तुत शासन पत्र कथित जयसिंह लाट नवसारिका के चौलुक्य राज्य वंशका संस्थापक था। जयसिंह के राज्य काल में भृगुकच्छ [भरूच] में गुर्जरों का और मानत अथवा उत्तर गुजरात के खेटकपुर [खेड़ा] पर सौराष्ट्र के वल्लभी राज के स्वामी मैत्रंकों का अधिकार था। हां तापी और नर्मदा के मध्य वर्ती भूभाग पर जयसिंह के अधिकार का चिन्ह पाया जाता है। क्यों कि उसके बड़े पुत्र युवराज शिलादित्य के सूरत से प्राप्त Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034491
Book TitleChaulukya Chandrika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyanandswami Shreevastavya
PublisherVidyanandswami Shreevastavya
Publication Year1937
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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