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________________ चौहुच चंद्रिका] चौलुक्यराज विजयराजके शासनपत्र का प्रथम पत्र। १ स्वस्ति विजय स्कन्धा पारात् विजयपुर वासकात् शरदुपगम प्रसन्न गगन तल विमल विपुले विविध पुरुष रत्नगुण। ५ निकरावमासिते महा सत्वापाश्रय दुर्लध्ये गांभिर्यवति स्थित्यनु पालन परे महोदधाविवमानव्यस गोत्राणां हा ३ रिति पुत्राणां स्वामी महासेनपावानुध्यातानां चौलुक्यानामान्वये व्यपगत सजल जलधर पटल गगन तल गत शिशिर कर ४ किरण कुवलयतर यशाः श्री जयसिंह राजः । तस्य सुतः प्रबलरिपु तिमिर पटलभिवरः सतत मुदयस्थोनक्तंदिव ५ माय सहित प्रतापो दिवाकर इव वल्लभ रण विक्रान्त श्री बुद्धवम्म राजः ॥ तस्य सूनु पृथिव्यामप्रतिरथाश्चतुरुदधि सलिला ५ स्वादित यशां धनद वरुणेन्द्रा क्रान्तक सम प्रभावः स्ववाहवलो पात्तोर्जित राज्य श्री प्रतापाति शयोपनत समग्र सामन्त म ७ पडलः परस्परा पीडित पार्थ कामनिर्मोचिप्रणति मात्रसु परितोष गंभीरोनत हृदयः सम्यक्प्रजा पानाधिगतः दीना ८ व कृपणं शरणागत वत्सलःयथाभिलषित फल प्रदो मातापित पावानुध्यातः श्री विजयराज सर्वानेव विषयपति राष्ट्र (कूटान्) ६ ग्राम महत्तराधिकारिकाविनामनु दर्शयत्यस्तु वस्सं विदित मस्माभि पंथा कायाकूल विषयान्तरगतः सन्धिय पूर्विण परिचय एषः प्रामः सोद्रका सपरिकः सर्वादित्य विष्टिप्राति भेविका परिहिणः भूमिच्छिद्रन्यायेन चाटभ प्रावेश्य जम्बुस Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034491
Book TitleChaulukya Chandrika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyanandswami Shreevastavya
PublisherVidyanandswami Shreevastavya
Publication Year1937
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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