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________________ [प्राक्कथन इस संधि पत्रके अनुसार एक अंग्रेज सेना पूनामें गइ और सर आर्थर वेलेस्लीने तपाकेसे उसे पेशवा पदपर अधिष्ठित किया । एवं लाटका बासदा, सचीन, राज्यपीपला, मांडवी तथा कोकणका धर्मपुर और गुजरातके दूसरे राज्य पेशवाकी आधीनतासे मुक्त हो ब्रिटिश के नैतिक जुएमें जुड़े। पुनश्च इन राज्योंपर जो पेशवाका सार्वभौम अधिकार और तज्जन्य स्वत्व था वह.अवान्तर रूपसे वणिक संघको मिला। बाजीरावको पेशवा बना उन्होंने सिंधिया और होल्करको अपने देशमें जानेके लिये संवाद दिया परन्तु इन दोनोंको कथित संधिके अनुसार महाराष्ट्र साम्राज्य और उसका अन्त प्रतीत हुआ अतः उन्होंने उसे नहीं माना । अतः सन १८०३ में अंग्रेजों के साथ उनकी लड़ाई शुरू हुई। किन्तु इस समय अंग्रेजोंका भाग्य चमक रहा था। उन्होंने सबमें विजय प्राप्त किया। सप्टेम्बरमें लार्ड लेक अलीगढ़ हस्तगत कर दिल्ही गया । और सिंधियाकी सेनाको हराकर दिल्हीपर अधिकार किया और अन्ध मुगल बादशाह अंग्रेजोंका रक्षित बना । गा यमुनाके दोआबसे सिंधियाकी सत्ताका अन्त हुआ । इधर दक्षिणमें आर्थर वेलेस्लीने अहमदनगर अधिकृत किया अनन्तर सिंधिया और भोंसलेकी सेनाको हराकर असीरगढ़ और बुरहानपुर लिया :। अन्ततोगत्वा कर्नल बुडिक्टने भरूच छीन लिया । उधर भोंसलेकी सेनाका अकोलामें पूर्ण पराजय हुआ । इस प्रकार सिंधियाको अपने साथी भोंसलेके साथ अंग्रेजोंसे सन्धि करनी पड़ी। उन्होंने दोनोंसे पृथक पृथक सन्धि की । १७ दिसम्बर सन १८०४ को भोंसलेके साथ सन्धि हुई। उसके अनुसार उसने बालेश्वर, कटक और गोदावरी तथा वर्धाके मध्यका भूभाग अंग्रेजोंको दिया। एवं सम्बलपुरके समीपवर्ती रजवाड़ों तथा निजामपरसे अपना स्वत्व उठा लिया और अंग्रेजोंका संरक्षित बना । तथा किसी युरोपियनको अपनी नौकरीमें नहीं रखना स्वीकार किया । इधर दौलतरावको भी अहमदनगर और अजण्टाके पासका मुल्क, भरूच और गंगा यमुनाके मध्यका मुल्क देना पड़ा। बादशाह आलम और जयपुर, जोधपुर और बुन्दीपरका स्वत्व छोड़ना पड़ा। अन्ततोगत्वा अंग्रेज संघका रक्षित राजा होना स्वीकार करना पड़ा। तब संघने उसे असीरगढ़, चम्पानेर और बुरहानपुर वापस दिया । इस लूटमें अहमदनगर पेशवाको, एजन्टादि भूभाग निजामको मिला। है. संघने 'मरहठों, गायकवाड़ पेशवा, भोंसला और सिंधिया, की कमर तोड़ कर गंगा यमुना तटके दिल्ही आदि, बुन्देलखण्ड, गोंडवाना, ओड़ीसा, छोटा नागपूर, मालवा, www.umaragyanbhandar.com Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
SR No.034491
Book TitleChaulukya Chandrika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyanandswami Shreevastavya
PublisherVidyanandswami Shreevastavya
Publication Year1937
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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