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________________ [८] पनेमें प्रकट होनेकालिखाहै. और 'महापुरुष चरित्र' में तथा 'त्रिषष्ठिशलाका पुरुष चरित्र' आदिक प्राचीन शास्त्रोमेभी ८२ दिन गये बाद इन्द्रका आसन चलायमान होनेसे अवधिज्ञानसे भगवान्को देखकर नमुत्थुण किया और त्रिशलामाताके गर्भमैपधराये, जब त्रिशलामाताने १४महास्वप्न देखें,तब खास इन्द्रने त्रिशलामाताके पासमें आकर तीर्थकर पुत्र होनेका कहा है, और फजरमें स्वप्न पाठकॉसभी तीर्थकर पुत्र होने का सुनकर सबको तीर्थकर भगवान्के उत्पन्न होने की मालूम होगई. इसलिये कल्पसूत्रमें जो नमुत्थुणंका पाठ है, सोभी आसोज वदी १३ के दिन संबंधी है, किंतु आषाढ शुदि६ के दि. न संबंधी नहींहै, क्योंकि देखो- 'नमुत्थुणं करके त्रिशलामाताके ग. र्भमें पधराये' ऐसा कल्पसूत्रादिमें खुलासालिखाहै, मगर आषाढ शु. दीदको आसनप्रकंपनसे नमुत्थुणं किया और फिर उसके बादमे ८२ दिन गये पीछे त्रिशलामाताके गर्भमें पधराये. या ८२दिन तो इन्द्रको विचारकरते चलेगये. वा पूरे ८२ दिन गयेबाद आसोज वदी १३ को फिर आसन प्रकंपनसे त्रिशलामाताके गर्भपधराये. अथवा ८२दिन ठहरकर पीछे त्रिशलामाताके गर्भमें पधराये. ऐसे पाठ किसीभी शास्त्रमें नहींहै. मगर ८२दिन तक तो मालूमभी नहींपडी, परंतु ८२दिन जाने बाद आसन प्रकंपनहोनेसे मालूम पडी, तब नमुत्थुणं किया और उसी रोज पधराये, ऐसे पाठ तो "महापुरुष चरित्र" में तथा "त्रि. षष्ठिशलाका पुरुष चरित्र" आदि अनेक प्राचीन शास्त्रोमें खुलासा पूर्वक प्रत्यक्ष मिलतेहैं, इसलिये आसोज वदी १३ कोही 'नमुत्थुणं' वगैरह च्यवन कल्याणकके तमाम कार्य होनेसे आगम पंचांगीकी श्रद्धावालाको व श्रीवीरप्रभुकी भक्तिवालाको यह दूसरा च्यवनरूप कल्याणक मान्य करनाही उचित है, बस ! आसोज वदी १३ कोही नमुत्थुणं करने वगैरह च्यवन कल्याणकके तमाम कार्य होनेका मा. न्यकरो या आषाढ शुदी ६ को नमुत्थुणं करने वगैरह च्यवन कल्या. णकके तमाम कार्य होनेका खुलासा पूर्वक शास्त्रपाठ बतलावो,व्यर्थ विवाद करने में कोई सार नहीं है. ११- श्रीआदीश्वर भगवान के राज्याभिषेकमें तो कोईभी क. ल्याणकके लक्षण नहीं हैं, मगर गर्भापहारसे गर्भ संक्रमणरूप दूस. रेच्यवनमें तो च्यवन कल्याणकके सर्व लक्षण प्रत्यक्ष मौजूद है, इ. सलिये उसका भावार्थ समझे बिनाही राज्याभिषेककी तरह गर्भापहारकोभी कल्याणकपनेका निषेध करना यहभी बे समझ है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034484
Book TitleBruhat Paryushana Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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