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________________ [६३] छ कल्याणकों संबंधी मंतव्यके कथनका संक्षिप्त सार. १- कल्पसूत्र तथा आचारांग सूत्रादि आगमानुसार विशेषतासे श्रीमहावीरस्वामिके च्यवनादि छ कल्याणकमान्य करने,और अतितअनागत-वर्तमानकालके सर्वतीर्थकर महाराजौकी अपेक्षासंबंधी सामान्यतासे पंचाशकादि शास्त्रानुसार पांचकल्याणकभी मान्य करने, इनमें कोई दोष नहीं है. मगर कितनेक लोग शास्त्रकार महाराजोके अभिप्रायको नहीं जाननेसे पंचाशकके पांच कल्याणको संबंधी सामान्य पाठकों भोले जीवोंको बतलाकर विशेषतासे कल्प-आचारांगादि आगमोक्त छ कल्याणकोंका निषेध करते हैं, सो अज्ञानतासे शास्त्रविरुद्ध प्ररूपणा करते हैं। २- श्रीऋषभदेवस्वामिके राज्याभिषेकके कार्यमें तो ध्यवन-जन्मदीक्षादि कोईभी कल्याणकके कुछभी लक्षण नहीं हैं, तथा उनके मास,पक्ष,तिथि वगैरहकाभीकहीं उल्लेखनहींहै और श्रीमहावीरस्वामिके दूसरे च्यवनरूप गर्भापहारके कार्य में तो सर्व तीर्थकर महाराजोकी माताओकी तरह त्रिशला मातानेभी १४ महास्वप्न आकाश से उतरते हुए देखेहैं, तथा उसी दिन इन्द्रमहाराजका त्रिशलामाता केपास आगमनहुआहै, तीर्थकर पुत्र होनेका स्वप्नफल कहाहै,व उनके मास-पक्ष-तिथि वगैरह च्यवन कल्याणकके सर्व कार्य प्रत्यक्षपने शास्त्रोंमें कथन किये हुए हैं. और समवायांगसूत्रवृत्ति, लोकप्रकाशादिशास्त्रोंमें उनको अलग भव गिनतीलियाहै,इसलिये गर्भापहाररूप दूसरे च्यवनके कार्यमें तो च्यवन कल्याणकपनेके सर्व लक्षण मौजूद हैं,जिसपरभी राज्याभिषेकके समान गर्भापहारकोभी ठहरते है, और उनको कल्याणकपने रहित कहतेहै सो सर्वथा अनुचित है। ३- श्रीमल्लीनाथस्वामिके स्त्रीत्वपनेमें तीर्थकरपनेके जन्म-दीक्षादि कार्य अच्छेरारूप हुए हैं, तो भी उन्होंकोही कल्याणकपना माननमें आताहै. तथा श्रीमहावीरस्वामि भगवानभी ब्राह्मण कुलमे देवानंदा माताके गर्भमे उत्पन्न हुए सो अच्छेरा रूपहै, तो भी उनको प्रथम च्यवनरूप कल्याणकपना मानते हैं । तैसेही गीपहाररूप आश्चर्य को भी दूसरा च्यवनरूप कल्याणकपना मानने में आता है, इसलिये आश्चर्य कहनेसे कल्याणकपना निषेध नहीं हो सकता. जिसपरभी आश्चर्य कहकर कल्याणकपनेका जो निषेध करतेहैं, वो लोग अपनी अज्ञानतासे बडी भूल करते हैं। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034484
Book TitleBruhat Paryushana Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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