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________________ तो 'दुर्लभबोधिका' नाम सिद्ध होताहै । इसबातको विशेष मात्मा. थी तस्वर पाठकगण स्वंय विचार लेवेगे। एक बात उत्थापन करनेसे अनेक बातें उत्थापन करनी पड़ती हैं। देखो-एक अधिकमहीना व छ कल्याणक उत्थापनकरनेसे उसकी पुष्टि के लिये, अनेक शास्त्रोके अर्थबदलनेपडे। अनेक जगह शास्त्रकार महाराजोंके अभिप्राय विरुद्ध आग्रह करना पडा। कितनीही जगह मिथ्या बातें भी लिखनी पडी। कितनीक जगह शास्त्रोंके आगे पीछे के संबंधवाले पाठोको छोडकर बिनासंबंधक अधूरे २ पाठभी भोले जीवोंको बतलाकर अपनापक्षकी सत्यता बतलानेका परिश्रम करना पंडा और कितनीही जगहतो शास्त्रोकी, पूर्वीचार्योंकी व भगवानकी भी आशातनाके हेतुमूत अनुचित शब्दभी लिखने पडे. उसकाअनु. भवतो सुबोधिक-किरणावलीआदिककी२८भूलोंवाले ऊपरकेलेखसे तथा इसभूमिकाके सबलेखपरसे और इस ग्रंथके अवलोकन करनेसे पाठकगणको अच्छी तरहसे होसकेगा, इसलिये एक बात उत्थापन करनेसे अनेक बाते उत्थापन करनी पडतीहैं ' यह लोकरूढीकी कहावतकी बात ऊपरके विषयमें प्रत्यक्ष देखनमें आती है। । इसप्रकार पर्युषणासंबंधी, व छ कल्याणक संबंधी अपना झू. ठा पक्ष स्थापन करने केलिये और भोले जीवोंको उन्मार्गमे गेरनेके. लिये, शास्त्र विरुद्ध होकर विनयविजयजीने सुबोधिकामे, तथा जयविजयजीने दीपिकामे, और धर्मसागरजीने किरणावलीमे, ऊपर मुजब अनेक भूले की हैं, उन्हीं भूलोको तपगच्छके कितनक आग्रही जन पर्युषणाके व्याख्यानमें वर्षोवर्ष वांचते हैं. उससे जिनाशा. की विराधनाहोकर भवबढनेका व दुर्लभबोधिका हेतुभूत अनर्थ होताहै. इसलिये अल्पसंसारी भव्यजीवोंको जिनाशानुसारसत्यबातोकी प्राप्ति होनेरूप उपकारकेलिये उपरकी सब बातोका खुलासा निर्ण. य इसग्रंथ अच्छीतरहसे लिखने में आया है । उसको देखकर यदि शास्त्राविरुद्ध प्ररूपणासे संसार परिभ्रमणका भय लगता हो तो उन भूलोको सुधारो, व्याख्यानमें वांचेनका बंध करो, और सत्यबातोंकों ग्रहण करो या बडोदा वगैरह किसीभी राज्य दरबारमें इन भूलोसं. बंधी श्रीगौतमस्वामिआदि गणधरमहाराज व सिद्धसेनदीवाकर, ह. रिभद्रसूरिजी वगैरह महाराजोंकी तरह सत्य ग्रहण करनेकी प्रति. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034484
Book TitleBruhat Paryushana Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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