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________________ [as] गेरनेके लिये विद्वत्ता के अभिमानसे शास्त्रकार महाराजोंके अभिप्राय विरुद्ध होकर झूठी २ कुयुक्तियें लगाना संसार वृद्धि व दुर्लभबोधि का कारण होनेसे आत्मार्थीयोंकों सर्वथा योग्य नहीं है । ४१ - पर्युषणापर्व ईधरके उधर कभी नहीं होसकते. कितनेक लोग जिना ज्ञाका मर्म समझे बिनाही कहते हैं, कि-पर्युषण पर्व अधिक महीना होवे तब ५० दिने करो, या ८० दिने क रो, मगर आगे या पिछे कभी करने चाहिये. ऐसा कहनेवाले सोने और पितल दोनोंको समान बनानेकी तरह जिनाशानुसार सत्य बातको, और जिनाशा विरुद्ध झुठी बातको, एक समान ठहराते हैं । इसलिये उन्होंका कथन प्रमाणभूत नहीं होसकता. किंतु मोक्षका हैतुभूत जिनाशानुसार ५० दिनेही पर्युषणा पर्वका आराधना करना योग्य है, मगर ८० दिने करना जिनाशा विरुद्ध होनेसे कदापि यो - ग्य नहीं ठहर सकता. देखो - जमालि वगैरहोंने जप, तप, ध्यान, आगमेंाका अध्ययन, परोपदेश, क्रिया अनुष्ठानादि बहुत २ किये थे तो भी जिनाशा विरुद्ध होनेसे संसार बढाने वाले हुए, मगर यही कार्य अनुष्ठान जिनाशानुसार करते तो निश्चय उसी भवमें मोक्षप्राप्त करने वाले होते. इसलिये आत्मार्थी भव्यजीव को जिनाशानुसारही ५० दिने दूसरे श्रावणमें या प्रथम भाद्रपद में पर्युषणापर्वका आराधन करना योग्य है, मगर जिनाशा विरुद्ध ८० दिने करना यो नहीं है । इसको विशेष तत्रज्ञ जन स्वंय विचार लेवेंगे । ४२ - पयुषणा पर्व की आराधना करनेके बदले विराधना करना योग्य नहीं है । पर्युषणा जैसे आनंद मंगलमय शांति के दिनोंमें जिनाशानुसार, धर्मकार्य करके पर्व की आराधना करते हुए, सब जीवोंसे मैत्रिभावपुर्वक शांतता से वर्ताव करनाचाहिये. और वर्ष भरके लगे हुए अति चारोकी आलोचना करके सब जीवोंके साथ भावपूर्वक क्षमत क्षाम णे करके अपनी आत्माको निर्मल करना चाहिये। जिसके बदले कि तनेही आग्रही जन पर्युषणाकेही व्याख्यानमें सुबोधिका - दीपिका की रणावलि आदि वांचने के समय श्रीमहावीर स्वामीके छ कल्याणक rantee उन्होंकों व अधिक महीनेके ३० दिन गिनती में लिये हैं उको निषेध करने के लिये, कितनीही जगहतो शास्त्रविरुद्ध व कित Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034484
Book TitleBruhat Paryushana Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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