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________________ [ ८ ] कल्पसम्बन्धी बात लिखके बालजीवोंको भ्रममँगेरें और अधिक मार्सकी गिनती निषेध दिखा कर अपनी विद्वत्ताकी चातुराई विवेकी तत्वज्ञ पुरुषोंके आगे हास्यकी हेतु रूप प्रगट करी है क्योंकि निशीथचूर्णिमेंही खास अधिक मासको गिनती प्रमाण करोहे और अज्ञात तथा ज्ञात पर्युषणा सम्ब न्धी विस्तारसे व्याख्या की है सो पाठ भावा सहित तीनों महाशयों के लेखों की समीक्षा में इसही ग्रन्थके पृष्ट ५ से १०४ तक छपगया है इसीलिये आगे पीछेके प्रसंग व. ले सब पाठको छोड़कर विना सम्बन्धके अधूरे पाठसे बाल जीवोंको भ्रममें गेरने सोभी उत्सून भाषण है । C और आगे फिर भी अधिक मासमें क्या क्षधा नहीं erhit तथा सूर्योदय नही होताहै और देवसिक पाक्षिक प्रतिक्रमण, देवपूजा मुनिदानादि क्रिया शुद्ध नहीं होती है सो गिनती में नहीं लेतेहो इस तरहका पूर्वपक्ष उठाकर उसीका उत्तर में पांचमासके चौमासेमें तुमभी चारमास कहते हो इत्यादि अज्ञानता से प्रत्यक्ष मिथ्या और उटपटांग लिखाई सोते वृथाही हास्य का हेतु कियाहै । और श्रीउत्तराध्ययनजी के २६ अध्ययनका पौरूष्याधिकारे मासबुद्धिके अभाव सम्बन्धी सविस्तर पाठको छोड़कर " असाढमासे दुप्यया * सिर्फ इत नाही अधूरा पाठ लिखके उत्सूत्र भाषण से भोले जीवोंका भ्रमानेका कारण किया है इसका निर्णयता तीनों महाशयों के लेखकी समीक्षा में इसही ग्रन्थ के पृष्ठ १३६ । १३१ में छपगया है । 9 और श्री आवश्यक निर्युक्तिकी गाथाका तात्पर्यार्थको समझे बिना तथा प्रसंगकी बातको छोड़कर 'जइफुल्ला' Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034484
Book TitleBruhat Paryushana Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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