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[ १७ ] आश्विन होनेसे श्राद्धपक्ष प्रथम आश्विनमें और दशहरा दूसरे आश्विनमें, इसी तरह से सब अधिक मासांके कारण मास नैमित्तिक कार्य आगे पीछे दोनों में मानते हैं। परन्तु सातवें महाशयजी नैमित्तिक कार्य केवल दूसरे मासमें ही करनेका लिख करके दो कार्तिक होवे तब दिवाली वगैरह कृष्णपक्षके नैमित्तिक कार्य दूसरे कार्तिकमें तथा दो पौष होवें तब श्रीचन्द्रप्रभुजीके,श्रीपार्श्वनाथजीके जन्म, दीक्षारि कल्याणक दूसरेपौषमें और दो चैत्रहोनेसे श्रीपार्श्वनाथजीके केवल ज्ञान कल्याणकको दूसरे चैत्रमें इसी तरहसे कृष्ण पक्षक नैमित्तिक कार्य भी दूसरे मासमें ठहराते हैं सो शाखविरुद्ध होनेसे अजताका कारण है क्योंकि ऊपरोक्त लेखानुसार ऊपर
कार्य प्रथम मासके प्रथम कृष्ण पक्ष में होने चाहिये से तो न्याय दूष्टि वाले विवेकी पाठकवर्ग स्वयं विचार लेवेंगे
और उपरोक्त नैमित्तिक कार्योंके लेखसे दो भाद्रपद होनेसे पर्युषखा भी दूसरे भाद्रपदके दूसरे शुक्लपक्षमें सातवें महाशयजी ठहराते हैं से भी निषकेवल अपनी अज्ञानता को प्रगट करते हैं क्योंकि मास नैमित्तिक कार्य अधिक मास होनेसे आगे पीछे दोनों मासमें करने में आते हैं पर पर्युषणा वैसे नहीं हो सकती है क्योंकि पर्युषणा तो दिनों के प्रतिबद्ध होनेसे अषाढ़ चौमासीसे ५० दिनकी गिनतीने अवश्य करके करनेका अनेक शास्त्रों में प्रगट पाठ है इसलिये दो भाद्रपद होनेसे पर्युषणा दूसरे भाद्रपदमें नहीं किन्तु प्रथम भाद्रपदमें ५० दिनकी गिनतीसे शास्त्रोंको प्रमाण करने वाले आत्मार्थियों को करनी चाहिये और प्राचीन कालमें जैन पञ्चांगानुसार मास वृद्धि होनेसे श्रावणमें पर्यु.
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