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________________ [ ३९५ ] तवृत्तिमें २६, श्रीव्यवहारवृत्तिमें २७, श्रीआवश्यकनियुक्तिमें स, तथा धूर्णिमें २९, प त्तिमें ३०, लघुपत्तिमें ३१, और मीविशेषावश्यकवृत्तिमें ३२, श्रीकल्पसूत्रमें ३३, तथा श्रीकल्प. सूत्रकी सात व्याख्यायोंमें ४०, प्रोजम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिमें ४१, तथा श्रीजम्बूद्वीप प्रज्ञप्तिको पांच व्याख्यायोंमें ४६, श्रीगच्छाचार पयमाकी वृत्तिमें ४७, श्रीज्योतिषकरण्डपयन्नामें ४८, तथा तत्तिमें ४९, श्रीदशावतस्कन्धसूत्रकी चूर्णिमें ५०, श्रीविधिप्रपामें ५१, श्रीमण्डलप्रकाशमें ५२, सैन प्रश्नमें ५३, और नवतत्वको चार ब्यास्यायोंमें ५७, और श्रीतत्त्ववार्थकी वृत्तिमें ५८, इत्यादि पञ्चाङ्गी भनेक शास्त्रोंके प्रमाणोंसे अधिक मासकी गिनती स्वयं सिद्ध है। इसलिये श्रीजिनाजाके आराधक पञ्चाङ्गीको श्रद्धावाले मात्मार्थी प्राणियोंको तो अधिक मासकी गिनती अवश्यमेव प्रमाण करना चाहिये जिससे कुछ भी दूषण नहीं लग सकता है परन्तु निषेध करने वाले है सो और पञ्चाङ्गी मुजब अधिक मासका प्रमाण करनेवालोंको अपनी कल्पनासे मिथ्या दूषण लगाते हैं सो संसारमें परिभ्रमण करने वाले उत्सूत्र भाषक और भनेक दूषणोंके अधिकारी हो सकते है सो तो पाठकवर्ग भी विचार सकते हैं। __ और पञ्चाङ्गीके एक भक्षरमात्रको भी प्रमाण न करने वाले को तथा पञ्चाङ्गीके विरुद्ध थोड़ीसी बातकी भी परूपना करने वालेको मिथ्या दूष्टि निहूव कहते है सो तो प्रसिद्ध बात है तो फिर पञ्चाङ्गोके अनेक शास्त्रानुसार अधिक मासकी गिनती सिद्ध होते मो, नही मानने वालेको और इतने पञ्चाङ्गीके शाके प्रमाण विरुद्ध परूपना Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034484
Book TitleBruhat Paryushana Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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