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________________ [३३] षयांतर होनेसे सर्वथा अनुचित है, इसको विशेष तत्त्वज्ञ जन स्वयं विचार लेवेंगे । ३५- अधिक महीनाकी तरह क्षय महीनाभी मानना योग्य है या नही ! पर्युषणादि धार्मिक कार्योंका भेद समझे बिना अधिक महीनेके ३० दिनोंमें चौमासी व पर्युषणादि धर्मकार्य नहीं करनेका कितनेक लोग आग्रह करते हैं, मगर कभी कभी श्रावणादि अधिक महीनेवाला वर्ष में कार्त्तिकादि क्षयमासभी आते हैं, तबतो कार्त्तिक महीने संबंधी श्रीवरिप्रभुके निर्वाण कल्याणका तप, दीवाली पर्व, गौतम स्वामी केवलज्ञान उत्पन्न होनेका महोत्सव, ज्ञानपंचमीका आराधन, चौमासी प्रतिक्रमण व कार्तिक पूर्णिमाका उच्छव वगैरह सभी कार्य तो उसी क्षयमासमें करते हैं । और लौकिक में अ धिक महीना, या क्षय महाना दोनों बरोबर माने हैं । जिसपरभी क्षय मासमें दीवाली पर्वादि धर्मकार्य करते हैं । और अधिक महीने में पर्युपर्वादि धर्मकार्य नहीं करने का कहते हैं । यहतो प्रत्यक्षमेही पक्षपातका झूठा आग्रह है. सो आत्मार्थियोंकों तो करना योग्य नहीं है इसलिये अधिक महीने में और क्षय महीने में भी धर्मकार्य करने उचित । इस बातकोभी तत्त्वज्ञ विवेकी पाठकगण स्वयं विचार लेवेंगे । ३६ - वार्षिक क्षामणे या प्राणिकोंके कर्मबंधन व 1 .. आयु प्रमाणकी स्थिति किस २ संवत्सरकी अपेक्षासे मानते हैं ? जैनशास्त्रों में पांच प्रकारके संवत्सर माने हैं, जिसमें नक्षत्रोंकी बालके प्रमाणसे ३२७ दिनोंका नक्षत्र संवत्सर मानते हैं। चंद्रकी बालके प्रमाण ३५४ दिनोंका चंद्रसंवत्सर मानते हैं । फलफूलादिक होनेमें कारणभूत ऋतु प्रतिबद्ध ३६० दिनोंका ऋतुसंवत्सर मा नते हैं । तथा अधिकमहीना होवे तब १३ महनोंके ३८३दिनोंका अभि. वर्द्धित संवत्सर मानते हैं, और सूर्य के दक्षिणायन उत्तरायनके प्रमाण ले ३६६ दिनोंका सूर्य संवत्सर मानते हैं । और पांच सूर्य संवत्स रोके प्रमाणसेही १८३० दिनोंका एक युग मानते हैं । इसी युगके १८३० दिनोंका प्रमाण पांचही प्रकार के संवत्सरोंके हिसाब से मिलन नेकेलिये, एक युगमें दो चंद्रमास बढते हैं, सात नक्षत्रमास बढ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034484
Book TitleBruhat Paryushana Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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