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________________ [ ३१७ ] और शास्त्रकारोंको मिथ्या दूषण लगाके,फिर आप मिर्दूषण भी बनेंगे, सो तो कलियुगकाही प्रभावके सिवाय और क्या होगा सो तत्त्वज्ञ पुरुष स्वयं विचार लेवेंगे। प्रश्नः-श्रीजैनशास्त्रों में चन्द्रसंवत्सरके ३५४ दिनका और अभिवर्द्धित संवत्सरके ३८३ दिनका प्रमाणकहा है फिर सांवत्सरी सम्बन्धी चन्द्रसंवत्सरमें ३६० दिनके और अभिवर्द्धित संवत्सर में ३९० दिनके क्षामणे करनेका आप कैसे लिखते हो। ___ उत्तरः-भो देवानुप्रिय, श्रीजिनेन्द्र भगवानोंका कहा हुआ नयगर्भित श्रीजिन प्रवचनको शैली गुरुगम और अनु . भव बिना प्राप्त नहीं हो सकती है क्योंकि यद्यपि श्रीजैनशास्त्रोंमें चन्द्रसंवत्सरके ३५४ दिन, ११ घटीका, और ३६ पलका प्रमाण कहा है और अभिवर्द्धित संवत्सरके ३८३ दिन, ४२ घटीका, और ३४ पलका प्रमाण कहा है सो चन्द्रके विमानकी गतिके हिसाबसे निश्चय नय संबन्धी समझना चाहिये और जो चन्द्रसंवत्सरमें ३६० दिनके और अभिवर्द्धितमें ३९० दिनके क्षामणे करने में आते हैं सो दुनियाकी रीतिसे, व्यवहार नय करके, लोगोंको सुखसें उच्चारण हो सके इसलिये बहुत अपेक्षासें समझना चाहिये। और व्यवहार नयसें चन्द्र संवत्सरमें ३६० दिनका और अभिवर्द्धित संवत्सरमें ३९० दिनका उच्चारण करके क्षामणे करने में आते हैं परन्तु निश्चय नय करके तो जितने समयसें सांवत्सरीमें क्षामणे करने में आवेंगे उतनेही समय तकके पापकृत्योंकी आलोचना हो सकेगी सो विशेष पाठकवर्ग भी स्वयं विषार लेवेंगे और चौमासी पाक्षिक देवसीराइ प्रतिक्रमण सम्बन्धी भी निश्चय नयकी और व्यवहार ४८ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034484
Book TitleBruhat Paryushana Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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