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________________ [ ३६९ ] ११ शास्त्रोंके प्रमाण अधिक मासके कारण से तेरह मास aatr पक्षका अभिवर्द्धित संवत्सर संबंधी रूपे हैं उसी शास्त्रों तथा युक्तियां और प्रत्यक्ष अनुभव से भी अधिक नासके कारण से पांच मासका अभिवर्द्धित चौमासा प्रत्यक्ष सिद्ध होता है क्योंकि शीतकालके, उष्णकालके, और बर्षाकालके चार चार मासका प्रमाण है परन्तु जैन पंचांगानुसार और लौकिक पंचांगानुसार जिस ऋतुमें अधिक मास होवे उसी ऋतुका अभिवर्द्धित चौमासा पांच मासके प्रमाणका मानना स्वयं सिद्ध है इस लिये अधिकमासके कारणसें चौमासा पांचमास दशपक्षका और सांवत्सरी में तेरह मास छवीशपक्षका अवश्य करके व्यवहार करना चाहिये । - शङ्का - अजी आप अधिक मासके कारणसे चौमासामें पांच मास, दशपक्षका और सांवत्सरी में तेरह मास छवीश पक्षका व्यवहार करना कहते हो सो क्षामणाके अवसर में तो हो सकता है, परन्तु मुहपत्ती (मुखबखिका) की प्रतिलेखना करते, वांदणा देते, अतिचारोंकी आलोचना करते वगैरह कार्यों में चौमास में पांच मास, दश पक्षका और सांवत्सरीमें तेरह मास छवीश पक्षका व्यवहार कैसे हो सकेगा । समाधान - भो देवानुप्रिय - जैसे मास वृद्धिके अभाव सें चौमासीमै चार मास, आठ पक्षका और सांवत्सरी में बारह मास, चौवीश पक्षका, अर्थ ग्रहण करने में आता है और मुखवस्तिकाकी प्रतिलेखनामें, वांदणा देनेमें, अतिचारोंकी आलोचना वगैरह कार्योंमें उतने ही मास पक्षोंकी भावना होती है, तैसे ही मास वृद्धि होने के कारण से चौमासीमें पांच मास, दश पक्षका और सांवत्सरीमें तेरह मास छवीस पक्षका ४७ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034484
Book TitleBruhat Paryushana Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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