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________________ [ ३६७ ) वृद्धि होनेसे अभिवर्द्धित संवत्सरके तेरह मास और छबीश पक्ष भी अनेक शास्त्रों में कहे हैं इसलिये सांवत्सरिक क्षामणेमें मास वृद्धिके अभावसे चंद्रसंवत्सर संबन्धी बारह मास चौबीस पक्ष कहने चाहिये और मास वृद्धि होनेसे अभि. वर्द्धित संवत्सर सम्बन्धी तेरह मास छबीश पक्ष कहने चाहिये और जिस शास्त्र में बारह मास चौबीश पक्ष लिखे होवें सो चन्द्रसंवत्सर सम्बन्धी समझने चाहिये। इतने पर भी मासवृद्धि होनेसे तेरह मास छबीश पक्ष व्यतीत होने पर भी बारह मास चौबीश पक्ष जो बोलते हैं सो कोई भी शास्त्र के प्रमाण बिना अपनी मति कल्पनाका बर्ताव करके श्रीअनन्त तीर्थंकर गणधरादि महाराजोंका कहा हुवा अभिवर्द्धित संवत्सरके नामको खंडन करके उत्सूत्र भाषणसे संसार वृद्धिका कारण करते हुवे गुरुगम रहित श्रीजैनशास्त्रों के तात्पर्यको नहीं जाननेवाले हैं क्योंकि देखो सर्वत्र शास्त्रों में साधुके बिहारकी व्याख्याने नव कल्पि विहार साधुको करनेका कहा है सो मासद्धि के अभावसें होता है परन्तु शीतकालमें अथवा उष्णकालमें मासवृद्धि होनेसे अवश्य करके १० कल्पिविहार करनेका प्रत्यक्ष बनता हैं तथापि कोई हठवादी शीतकालमें अथवा उष्णकालमें मास वद्धि होतेभी नवकल्पि विहार कहनेवालेको माया मिथ्या का दूषण लगता है क्योंकि जैसे कार्तिक पीछे साधने वि. हार किया और मास कल्पके नियम मजब विचरता है उसी समय शीतकाल में अथवा उष्णकाल में अधिक मास होगया तो उस अधिक मास में अवश्य करके दूसरे गांव विहार करेगा परन्तु एकही गांव में दो मास तक कदापि Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034484
Book TitleBruhat Paryushana Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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