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________________ [ ३३१ ] सहकीसबपोल दिनदिनप्रति खुलतीगई जिससे कल्पित ढूंढकमत को भोजनशास्त्रोंकेविरुद्ध और संसारद्विका हेतु भूत जानकर डोदिया और पीजैनशास्त्रोंके प्रमाणानुसार सत्यबातोंको ग्रहण करनेके लिये संवेगपक्ष अङ्गीकारकरके अनेकशास्त्रोंका अवलोकन किया और श्रीजैनतत्त्वादर्श, अज्ञानतिमिरभास्कर, तत्वनिर्णयप्रासाद वगैरह भाषाके ग्रन्थोंका संग्रह करके प्रसिद्धभी कराये जिससे विद्वान्भी कहलाये तथा दूढकमतकी मिथ्यात्वरूप पाखन्डके भ्रमजालसे कितनेही भव्यजीवोंका उद्धार भी किया और अनेक भक्तजनोंसे खबही पूजाये-शिष्यवर्गका समुदाय भी बहुत हुवा तथा शुद्ध प्ररूपक, उत्कृष्टिक्रिया धरने वाले भी कहलाये और श्रीमद्विजयानन्दसूरि-न्यायाम्भोनिधिजीवगैरह पदवियोंकोभी प्राप्तमये जिससे दुनियामें प्रसिद्ध मी हुवे परन्तु यह तो दुनियाने प्रसिद्ध बात है, कि-जिस भादमीका जो स्वभाव पहिलेसे पड़ा होवे उस आदमीको कितनेही अच्छे संयोगोंसे चाहे जितना उत्तम गिनो अथवा श्रेष पदने स्थापनकरो तो भी अपना पहिलेका पड़ा हुवा स्वभाव नहीं फुटता है सोही बात नीति शास्त्रोंके 'मुभाषितरत्न भान्हागारम्' मामा अन्य के पृष्ठ १०६ में कही है। तैसाही वर्ताव म्यायाम्भोनिधिजी नामधारक श्रीआत्मारामजीने भी किया है, मर्यात-पूर्वोक्त ढू'ठकमतके साधुपनेने अनेक शास्त्रोंके विरुद्धार्थमें अनेक जगह उत्सूत्र भाषणकरने वगैरह के कार्यो का जो पहिले स्वभाव था सो नहींजानेके कारणसे उसीमुजबही संवेगपक्षेने मी अपने विद्वत्ताके अभिमानसे कल्पितबातोंको स्थापन करनेके लिये पर भवका भय न करके एक 'जैनसिद्धान्त समाचारी' परन्तु बास्तव, उत्सूत्रोंके कुयुक्तियोंकी भ्रमखाड" नामक पुस्तक बनुमान १६० शास्त्रोंकेविरुद्ध लिखके, ६० जगह अन्दाज उत्सूत्र www.umaragyanbhandar.com Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
SR No.034484
Book TitleBruhat Paryushana Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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