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________________ [ ३२९ ] अब सत्यग्राही सज्जन पुरुषोंको निष्पक्षपाती हो करके विचार करना चाहिये कि एक सामायिक विषयमें प्रथम करेमिभंते पीछे इरियाव ही सम्बन्धी २१ शास्त्रों के प्रत्यक्ष प्रमाणोंको न्यायके समुद्र हो करके भी श्रीआत्मारामजीने छोड़ दिये और आप उन्ही शास्त्रोंके पाठोंकी श्रद्धा रहित बनकरके उन्ही शास्त्रोंके तथा उन्हीं शास्त्रकार महाराजों के विरुद्धार्थ में प्रथम इरियाबही स्थापन करने के लिये ऊपरोक्त कैसा अनर्थ करके कहीं उपधानसम्बन्धी, कहीं साधुके जाने आने सम्बन्धी कहीं चैत्यवन्दनसम्बन्धी, कहीं स्वाध्यायसम्बन्धी, कहीं षड़ावश्यकरूप प्रतिक्रमणसम्बन्धी, कहीं पौषधमम्बन्धी, इत्यादि अनेक तरहके अन्य अन्य विषयोंके सम्बन्ध में शास्त्रकार महाराजोंने इरियावही कही है जिसके बदले उन्हीं शास्त्रकार महाराजों के विरु द्वार्थ में सामायिक में प्रथम दरियाव ही स्थापन करने के लिये आगे पीछे के पाठोंकों छोड़ करके अधूरे अधूरे पाठ लिखते न्यायाम्भोनिधिजीको पर भवका कुछ भी भय नही लगा और इस लौकिक में भी अपनी विद्वत्ताको हासी करानेके कारणरूपं इतना अन्याय करते कुछ शर्म भी नहीं आई इसलिये सामायिकाधिकारे प्रथम करेमिभते पोछे हरियावही सबी गच्छोंके प्रभाविक पुरुषोंने अनेक शास्त्रों में प्रत्यक्ष पने अविसंवादरूप खुलासा पूर्वक लिखी है जिसको जानते हुवे भी अभिनिवेशिक मिथ्यात्व के जोरसे श्रीहरिभद्रसूरिजी श्री अभयदेवसूरिजी श्रीदेवेन्द्रसूरिजी वगैरह प्रभाविक पुरुषोंको विसंवादीका मिथ्या दूषण लगा करके सामायिक में प्रथम इरियावही स्थापनेका विसंवाद ४२ , 2 Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034484
Book TitleBruhat Paryushana Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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