SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 430
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ pop ] होता है उसी में सन् १९०८ के २-३ अङमें छप चुका है उसी पासीराम और जुगलरामको गङ्गाजी भेजकर पवित्र कराने सम्बन्धी ढूंढकसाधुनामधारक कुंदनमलने १४ पृष्ठकी छोटीसी एक पुस्तक बनाकरके प्रगट कराई है सो पुस्तक छठे महाशयजीने वांची है और उन्हके पास भी है उसी पुस्तकमें छठे महाशयजीके गुरुजी न्यायामोनिधिजी श्रीआत्मारामजी सम्बन्धी तथा श्रीजनश्वेताम्बर मूर्तिपूजने वालों सम्बन्धी और श्रीसिद्धाचलजी श्रीगीरनारजी श्रीआबूजी श्रीसमेतशिखरजी वगैरह नीजैनतीर्थों सम्बन्धी अनेकतरहके अनुचित शब्द लिखके निन्दा करी है उसीके निमित्त भूत छठे महाशयजी बगैर हुवे हैं और उसी पुस्तकके पृष्ठ ३-४में घासीराम और जुगलरामको गङ्गाजीके जलसें पवित्र कराये तैसेही छठे महाशयजीके गुरुजी श्रीमात्मारामजीको गङ्गाजीके जलसें पवित्र न करानेके कारण अपने गुरुजीको और अपने गुरुजीकी सम्प्रदायमें दीक्षा लेनेवालोंको अपवित्र ठहरनेका कलङ्क लगवाया और पृष्ठ ११ में घासीराम, जुगल रामको गङ्गाजी भेजने वालोंको तथा भेजाने वालोंको और सम्मती देकर अच्छा समझने वाले छठे महाशयजी आदिको मिथ्यात्वी, पाखण्डी, वगैरह शब्दोंका इनाम दे कर फिर पृष्ठ १३ के अन्त में गङ्गाजी भेजने वालोंको श्रीजैनशासनको लांछन (कलङ्क) लगानेवाले ठहराकरके तीन वार धीक्कारका इनाम दिया है। ....... इस जगह निष्पक्षपाती सज्जन पुरुषोंको विचार करना चाहिये कि श्रीजैनतीर्थोंकी तथा श्रीजैनतीर्थों को मानने वालोंकी द्वेष बुद्धिसें बड़ेही अनुचित शब्दोंसे निन्दा करके www.umaragyanbhandar.com Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
SR No.034484
Book TitleBruhat Paryushana Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy