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________________ [२६] 1 चिए वा निग्गताणं, अट्ठ अतिरिता भवंति" इत्यादि निशीथ चूर्ण्यदिकमें लिखे मुजब वर्षाके अभावले आसोजमै विहार करतो ७० दिनसे कमती भी ४० दिन, या ४५-५० दिनभी होते हैं। देखो - पहिले ५० दिने वार्षिक कार्य जबलग नहीं करें तबतक विहार करनेमें आताथा. मगर अभी वर्तमान में तो आषाढचौमासीबाद विहार करकी रूढी नहीं हैं । तैसेही पहिले वर्ष के अभाव से आसोजमै भी विहार करते थे मगर अभीतो वर्षा नहीं होवे रस्तोंके कीचड सुककर साफ होगये होंवे तो भी कार्तिक पूर्णिमा पहिले आसोजमै विहार करनेकी रूढी नहीं हैं । इसलिये अभी वर्षा के अभाव से आसोजमे विहार नहीं कर सकते और दो आसोज हो तो भी कार्तिक तक १०० दिन ठहरते हैं. इसलियेभी ७० दिनका हमेशां नियत नियम नहीं हैं। इसको विशेष तत्त्वज्ञ जन स्वयं विचार लेवेगें । २७ - महीना बढे तब होली, दिवाली वगैरह लौकिक पर्व पहिले महीने में होवें या दूसरे महीनेमे होवें ? कितनेक पर्व पहिले महीने में होते हैं, और कितनेक पर्व दूसरे महीने में भी होते हैं. देखो-दो भाद्रपद होवें तब जन्माष्टमीका पर्व पहिले भाद्रपद में करते हैं. और गणेश चौथका पर्व दूसरे भापदम करते हैं. व दो आसोज होवें तब श्राद्धपक्ष पहिले आसो जमे करते हैं, और दशहरा दूसरे आसोजमै करते हैं. तथा दो कार्तिकहोवे तब दीवालीपर्व पहिले कार्तिकमें करते हैं. इसतरहसे बारहमासी के सबी पर्व कृष्णपक्षसंबंधीपर्व पहिले महीने में और शुफ्लपक्ष संबंधीपर्व दूसरे महीने में समझलेना और " मलमासो द्वेधा अधिकमासः - क्षयमासश्चेति । तदुक्तं काठकगृह्ये, यस्मिन् मासे न संक्रांतिः, संक्रांति द्वयमेव वा मलमासोल विशेयो मासः स्यात् तु त्रयोदशः । तथा च उक्तं हेमाद्रि नागर खंडे-नभो वा नभस्यो वा मलमास यदा भवेत् सप्तमः पितृपक्षः स्यादन्यत्रेव तु पंचमः । इत्यादि " निर्णयासंधु, धर्मसिंधु, निर्णयदीपकादि लौकिक धर्मशास्त्रोंके प्रमाणानुसार आषाढ चौमास पांचवा पितृपक्ष ( श्राद्धपक्ष ) होता है, मगर श्रावण, भाद्रपद बढे तब उसकी गिनतीले सात [७] श्राद्धपक्ष होता है इसलिये लौकिकवालेभी अधिकमहिनेके ३० दिन गिनती में लेते हैं । जिसपरभी लौकिकवाले अधिक महीने के ३० दिन गिनती में नहीं लेते, या प्रथम महीने में दीवाली, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034484
Book TitleBruhat Paryushana Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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