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________________ [ २७९ ] करके उसी तरहके उत्सूत्र भाषण कलमाप्त करने के लिये आप भी उसीमें फसे, हाय अफसोस-ग कदाग्रहके बस होकरके अपना पक्ष जमाने के लिये सत्य असत्यका निर्णय किये बिना अपनी मतिकल्पनासे इतने विद्वान् कहलाते भी स्वच्छन्दाचारीसें लिखते कुछ भी विचार नही किया यह तो इस कलियुगकाही प्रभाव है,... और दूसरा यह है कि न्याय अन्यायको न देखने वाले तथा दूष्टिरागके झूठे पक्षग्राही और कदाग्रहके कार्यमें आगेवान ऐसे श्रीकलकत्तानिवासी प्रीतपगच्छके लक्ष्मीचंदजी सीपाणीको पालणपुरसे श्रीवल्लभ विजयनीकी तरफका पत्र आया था उसी पत्रमें ६-७ जगह मिथ्या बातें लिखी है उसी पत्रके अक्षर अक्षरका उतारा, मेरे ( इस प्रत्यकारके ) पास है उसी उतारेकी नकलको यहाँ लिखकर उसीकी समीक्षा करनेका मेरा पूरा इरादा पा परन्तु विस्तारके कारणसे सब न लिखते नमुनारूप एक बात लिख दिखाता हूं___ छठे महाशयजी श्रीवनभविजयजी लक्ष्मीचन्दजी सीपाणीको लिखते हैं कि [ बनारससे पर्युषणा विचार नामा ट्रेकट निकला है उसीकाही भाषान्तर छापेवाटेने छापा है इसमें हमारा कोई मतलब नही है ना हम इस बातको मन वचन काया करके अच्छी समझते हैं] इस जगह सज्जन पुरुषोंको विचार करना चाहिये कि सीपाशीजीके पत्रमें पर्युषणा विचारको तथा उसीका भाषान्तर छापेवालेने छापेमें प्रसिद्ध करा है उसीको छठे महाशयजी मन, वचन, काया अच्छा नही समझते हैं Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034484
Book TitleBruhat Paryushana Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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