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________________ [ २ ] असत्यको छोड़कर सत्यको ग्रहण करनेकी इच्छाही मही रखते हैं तैसेही आप लोगोंके भी कृत्य है (इस बातका इस ग्रन्यके अन्तमें खुलासा करनेमें आवेगा ) इस लिये उपरकी बातमें भी ढूंढियांका सरणा आप लोगही लेते हो। . ६ छठा-जैसे कितनेही ढूंढिये लोग शास्त्रानुसार युक्तिपूर्वक श्रीजिनमूर्तिको मानने पूजने वगैरहकी सत्य बातोंको जानते हुए भी अपने मत कदा ग्रहको कालमें फस करके इस लोककी मामता पूजनाके लिये अपने दृष्टिरागी भक्तजनोंके आगे मिथ्यात्वके उदयसें सत्य बातोंका निषेध करके अपने अन्ध परम्पराकी उत्सूत्र भाषणरुप कल्पित बातोंका स्थापन करके संसार वृद्धिका कार्य करते हैं तैसेही कितनीही बातोंमें आपके गुरुजी न्याया. म्भोनिधिजी (श्रीआत्मारामजो) में भी किया है और आप लोग भी करते हो (जिसका खुलासा आगे करने में आता है) इस लिये भी ढूंढियांका सरणा आप लोगही सातमा-जैसे कितनेही ढूंढिये श्रीजैन तीर्थोंको छोड़के अन्य मतियोंके मिथ्यात्वी तीर्थों में जाते हैं तैसेही खास मोवनभविजयजीनें भी कराया अर्थात् घासीराम और जुगलराम इन दोनुं ढूंढक साधुयोंने (श्रीजिनेश्वर भग. वान् तुल्य श्रीजिनमूर्तिकी तथा श्रीजमशासनके प्रभाविक महान् उत्तम श्रीजैनाचार्योंकी ) द्वेष बुद्धिसें वृथा निन्दा करनेका और शास्त्रोंके विरुद्ध होकरके उत्सूत्र भाषणका तथा अपनी मति कल्पना मुजब मिथ्या बातोंमें वर्तनेका मिथ्यात्वरूप ढूंढक मतका पाखण्डको संसार वृद्धिका कारण Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034484
Book TitleBruhat Paryushana Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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