SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 372
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ २४४ ] संपर श्रीवाभाविजयजीको, उपर लिखे मतलबके लिये मेजने में आया तोभी श्रीवल्लभ विजयजीने कुछ भी जबाब नही दिया तब श्रीपालणपुरके प्रसिद्ध आदमी पीताम्बर भाई हाथी भाई महताके नामसे एक पत्र लिखा उसीमें भी विशेष समाचार पर्युषणा सम्बन्धी श्रीवल्लभविजयजीने दूसरे प्रावणमें आषाढ़ चौमासीसे ५० दिने पर्युषणा करने वालोंको आज्ञाभङ्गका दूषण लगाया जिसका खुलासे उत्तर पूछाया था और उसी पत्रमें ५० दिने पर्युषणा शास्त्रकारोंने करनेका कहा हैं उसी सम्बन्धी पाठ भी लिख भेजे थे वह पत्र श्रीवल्लभविजयजीको पीताम्बर भाईने पहुंचाया और जबाब भी पूछा इतने पर भी श्रीवल्लभविजयजीने अपनी बातका जबाब नही दिया और शास्त्रों के पाठोंको प्रमाण भी नहीं किये परन्तु व पक्षपातका पण्डिताभिमानके जोरसें अन्याय कारक विशेष झगड़ा फैलानेका कारण करके माया वृत्ति से आप निर्दूषण बन कर श्रीबुद्धिसागरजीकों दूषित ठहरानेके लिये अकोबर मासको ३१ वी तारीख सन् १९०९ आसोज वदी ३ वीर संवत् २४३५ का अङ्क २९ वा के पृष्ट ४-५ में अपनी चातुराईको प्रगट करी हैं जिसको इस जगह लिख दिखाता हुं ; [खबरदार ! होवो होशियार ! ! करो विचार ! निकालो सार ! ! ! लेखक-मुनि-बल्लभ विजय-पालणपुर, इसमें शक नहीं कि, अंग्रेज सरकारके राज्य में, कलाकौशल्यकी अधिकता हो चुकी है, हो रही है और होती रहेगी ! परंतु गाम वसे वहां भङ्गी चमारादि अवश्य होते हैं ! तद्वत् अच्छी अच्छी बातोंकी होशियारीके साथ में बुरी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034484
Book TitleBruhat Paryushana Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy