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________________ [२१] भागी होवे । इसी तरह जैन पंचांगभी पूर्वाचार्योंके समयसे वि. च्छेद होनेसे अभी शुरू नहीं होसकता. जिसपरभी शुरू करें, तो, २० वे दिन पर्युषणपर्व करनेकी व पांच पांच दिने अज्ञात पर्युषणा स्थापन करनेकी बाते जो विच्छेद हुई हैं, वे बातेभी जैन टिप्पणा शुरू होनेसे पीछी शुरू करनी पडेंगी और वे बातें अभी पडताकाल होनेसे शुरू होसकती नहीं हैं, इसलिये अभी जैन पंचांग शुरू हो सकता नहीं है। १९- अभी दो श्रावणादिकके दो आषाढ बना सके या नहीं? कितनेक कहते हैं, कि-लौकिक टिप्पणमें श्रावण, भाद्रपद बढे तब जैन हिसाबसे दो आषाढ बना लेवे तोपर्युषणका भेद मिट जावे. मगर ऐसा भी नहीं हो सकता, क्योंकि जब जैन पंचांगही अभी विच्छेद है, और तिथि, वार, पक्षादि पंचांग संबंधी व्यवहार लौकिक मुजब करते हैं, जिसपरभी १ महीनेका फेरफार करदेना योग्य नहीं है । देखो.- दो श्रावण होनेसे भरपूर वर्षाऋतुवाला प्रथ. म श्रावण शुदी १५ को प्रत्यक्ष प्रमाणसेभी विरुद्ध होकर उसको आषाढ पूर्णिमा बनाना जगत विरुद्ध होनेसे व्यवहारमे मिथ्याभाषणका दोष लगे। और पूर्वाचार्योंनेभी ऐसा नहीं किया, इसलिये अभी दो श्रावण या दो भाद्रपदके दो आषाढ बनाना नहीं बन सकता. किंतु लौकिक मुजब दो श्रावण भाद्रपदादि सबगछोके पूर्वाचार्य पहिलेसे मानते आये हैं, वैसेही वर्तमानमें अपने सबकोही मान्य करना योग्य है. बस ! धार्मिक व्यवहार पर्युषणपर्वादि जैन सिद्धांतानुसार ५० वें दिन करना. और तिथि, वार, मास, पक्षादि व्यवहार लौकिक टिप्पणानुसार करना. यही न्याय युक्ति. युक्त सर्व सम्मत होनेसे सर्व जैनीमात्रको मान्य करना योग्य है, इसलिये इसमें अन्य २ कल्पना करना व्यर्थ है। २०- पर्युषणा कितने प्रकारकी होती हैं ? निशीथचूर्णि और कल्पसूत्रकी नियुक्तिवृत्ति वगैरह शास्त्रों में पर्युषणाके ८ प्रकारसे अनेक भेद बतलाये हैं, मगर यहां तो मुख्यतासे वर्षास्थितिरूप और वार्षिक कार्यरूप ऐसे दो अर्थ वर्तमानमें Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034484
Book TitleBruhat Paryushana Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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