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________________ [ २२२ ] ३० घटीका और ५८ पलका है जिसको सामिल लेकर ३८३ दिन ४२ घटीका और ३४ पल प्रमाणे तेरह मासोंकी गिनती का हिसाबसे अभिवर्द्धित संवत्सर सबी शास्त्रकारों में और खास श्रीतपगच्छके पूर्वाचार्यों ने भी कहा है। और अधिक मासको कालचूला कहनेसें भी गिनतीमें अवश्यही लेना शास्त्रकारोंने कहा है उस सम्बन्धी इन्ही पुस्तकके पृष्ठ ४८ से ६५ तक तथा और भी अनेक जगह पगया है सो पढ़नेसे सर्व निःसन्देह हो जावेगा इसलिये न्यायरबजी अधिक मासको कालपुरुषकी चोटी लिखकरके गिनतीमें नही लेनेका ठहराते हैं सो पृथा अपनी कल्पनासें भोले जीवोंकी शाखानुसार सत्य बात परसें श्रद्धाभङ्ग कारक उत्सूत्र भाषण करते हैं सो उपरके लेखसें पाठकवर्ग विशेष अपनी बुद्धिसे भी विचार सकते हैं ;. और श्रीकल्पसूत्रको टीकाका प्रमाण न्यायरबजीने दिखाया सो तो ( अंधेचुये थोथेधाम, जैसेगुरु तेसयजमान) की तरह करके अनेक शास्त्रोंके विरुद्ध उत्सूत्र भाषणरूप अन्ध परम्पराका मिथ्यात्वको पुष्ट किया है क्योंकि प्रथम श्रीधर्मसागरजीने श्रीकल्पकिरणावलीमें श्रीअमन्त तीर्थङ्कर गणधरादि महाराजांके विरुद्धार्थ में अपनी कल्पनासे जैन शास्त्रोंके अतीव गम्भीरार्थके तात्पर्य्यको समझे बिना उत्सत्र भाषगरूप जैसे तैसे लिखा है उसीकों देखके दूसरे श्रीजयविजयजीने श्रीकल्पदीपिकामें तथा तीसरे श्रीविनयविजय जीने श्रीसुषयोधिका भी उसी तरहके उत्सूत्र भाषणके गप्पोंको लिखे हैं और उसीका शरणा लेकरके चौथे न्यायांभो निधिजीने भी जैन मिद्धान्त समाचारीकी पुस्तक में अपनी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034484
Book TitleBruhat Paryushana Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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