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________________ [ perp ] और इन्ही महाराज श्रीजिनप्रभसूरिजीने श्रीसन्देहfastest वृत्ति में श्री कल्पसूत्रजीके मूलपाठकी व्याख्या किये बाद इन्ही श्रीकल्पसूत्रकी नियुक्ति जो कि सुप्रसिद्ध श्रीभद्रबाहु स्वामीजी कृत है उसकी व्याख्या किवी है उसीमें काल ठवणाधिकारे समयादि कालसे आवलिका, मुहूर्त, दिन, पक्ष, मास, ऋतु, अयन, सम्वत्सर, युगादिकी व्याख्या करके आगे अधिक मासको अच्छी तरहसे प्रमाण किया है और प्राचीनकालाश्रय जैसे चन्द्रसंवत्सर में पचास दिने पर्युषणा तैसेंही अभिवर्द्धित संवत्सर में वीश दिने पर्युषणा खुलासा पूर्वक कही है और श्रीनिशीथ चूर्णिके दशवे उद्देशेमें जैसे पर्युषण सम्बन्धी व्याख्या है तैसेही उन्ही महाराजने भी प्रायः उसीके सदृश अच्छी तरहसे व्याख्या किवी हैं और इन्ही महाराज श्रीजिनप्रभ सूरिजीनें श्रीविधिप्रपा नाम ग्रन्थ बनाया है उसीके पृष्ठ ५३ में जैसा पाठ है बैसाही नीचे मुजब जानो ; आसाढ चउम्मा सियाओ नियमा पसासहमे दिणे पज्जो tart area न इक्कपंचासहमे जयावि लोइय टिप्पणयाणुसारेण दो सावणा दो भद्दवया वा भवंति तथावि पसा सहमे दिने नउण कालचूलाविकाए असीहमे सवीसह राइनासे वकते पज्जोसवणंतित्ति वयणा जंच अभिबढियंभि वीसत्तवृत्तं तं जुगमज्जे दो पोसा जुगअंते दोषी आसाढत्ति सिद्धतटिप्पणयाणुरोहेणं चैव घट ते संपयं नवह तित्ति जहुत्तमेव पज्जोसवणादिणति ॥ अब सत्यग्राही सज्जन पुरुषोंसे मेरा इतनाही कहना है कि उपरमें श्रीखरतरगच्छके श्रीजिनप्रभसूरिजीने श्रीसन्देह Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034484
Book TitleBruhat Paryushana Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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