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________________ [ १८३ ] भ्रष्टा ततो भ्रष्टा' कहने में आता है । अथवा । कोई एकस्त्री थी जिसने डाहीने हाथमें विधवाका चिह्न लम्बी काँचली और वाम हाथमें सधवाका चिह्न चुड़ा धारण किया था उसीनेही थोड़ी देर बाद फिर उससे विपरीत, याने, वाम हाथमें विधवाका चिह्न लम्बी काँचली और डाहीने हाथमें सधवाका चिह्न चुड़ा धारण किर लिया ऐसी पागल स्त्री न तो विधवाकी और न सधवाकी गिनती में आसकती है तैसेही दो श्रावण होते भी भाद्रपद तक पचास दिनका और दो आश्विन होते भी कार्त्तिक तक 90 दिन का आग्रह करने वालोंको श्रावण और आश्विन बढ़नेंसे एक तरफ भी श्रीजिनाज्ञाके आराधक नही हो सकते हैं क्योंकि दोनों अङ्ग खुल्ले रहते हैं इसलिये उपरोक्त दृष्टान्तका न्याय उपरके महाशयोंको बरोबर घटता है इसलिये अब उपरकी बातको न्यायांभोनिधिजीके परिवारवालोंको और उन्होंके पक्षधारियोंको अवश्य करके विचारनी चाहिये और पक्षपातको छोड़के सत्य बातको ग्रहण करना सोही उचित है । और शुद्धसमाचारकार दो श्रावणादि होने से ५० दिने पर्युषणा करके पर्युषणा के पिछाड़ी १०० दिन अनेक शास्त्रानुसार न्याययुक्ति सहित मान्य करता है इस लिये एक अंग खुलेका दृष्टान्त न्यायाम्भोनिधिजी कों लिखके आज्ञा भङ्ग रूप दूषण शुद्धसमाचारीकार को दिखाना सर्वथा करके उत्सूत्र भाषणरूप वृथा है ! और आगे लिखा है कि- ( पूर्वपक्ष इस दूषणरूप यन्त्र में तो आपको भी यन्त्रित होना पड़ेगा उत्तर—हे समीक्षक ? यह आज्ञाभङ्गरूप दूषणका लेशभी हमको न Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034484
Book TitleBruhat Paryushana Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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