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________________ [ १६९ ] और आषाढ़ की वृद्धि कहते है सोही बात शुद्धसमाचारी कारने भी जैन सिद्धान्तोंकी अपेक्षायें लिखी है सो सत्य है इसलिये निषेध नही हो सकती है। तथापि न्यायाम्भोनिधिजी उपरकी सत्य बातकों अज्ञ जनोंको केवल भ्रमानेका ठहराते हैं हा ! हा! अतिव खेदः। उपरोक्त न्यायानुसार न्यायांभोनिधिजीने श्रीअनन्त तीर्थङ्करादिमहाराजोंकी और अपने ही पूर्वजोंकी आशातना कारक अनन्त संसार वृद्धिका कारणरूप वृथा क्योंकिया होगा इसको विशेष पाठकवर्ग स्वयं विचार लेना ; तथा थोडासा और भी सुन लिजीये-शुद्ध समाचारी कारने जैन सिद्धान्तों की अपेक्षायें पौष और आषाढ़ मास की वृद्धि दिखाई और लौकिक टिप्पणा की अपेक्षायें हरेक मासकी द्धि दिखाई सो सत्य है तथापि न्यायाम्भीनिधिजी.(.अजजनोंको केवल भ्रमानेका) ठहराते है तो इस लेख तो न्यायाम्भोनिधिजीने खास अपने ही पूज्य गुरुजन पूर्वाचार्यों को भी अजजनोंको भ्रमाने वाले ठहरा दिये क्योंकि जैसे उपरोक्त शुद्ध समाचारी कारमें अधिक मास सम्बन्धी लिखा है तैसे ही श्रीतपगच्छके पूर्वाचाने भी लिखा है। जब शुद्ध समाचारी कारके लेखको न्यायाम्भोनिधिजी अज्ञजनोंको भ्रमानेका ठहराते है तब तो न्याया मोनिधिजीके पूर्वाचायौंका लेख भी अशजनोंको भ्रमानेबाला दहर गया जब न्यायानिधिजीने अपने पूर्वाचाव्योंकी : आशातनाका कुछ भी भय न रख्खा तो फिर न्यायाम्भोनिधिजीको न्याययुक्त आत्मार्थी कैसें मान सकते है अपितु मही इस बातको भी पाठकवर्ग विचार लो, २२ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034484
Book TitleBruhat Paryushana Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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