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________________ [१३] ६- कालचूला शिखररूप है या चोटीरूप है ? अधिक महीनेको शास्त्रों में कालचूला कहा है और दिनोंकी गिनती में भी लिया है जिसपरभी कितनेक महाशय दिनोंकी गिनती निषेध करनेके लिये चोटीरूप कहते हैं. और जैसे पुरुष के शरीर के मापमें उसकी चोटीकी लंबाईका माप नहीं गिना जाता, तैसेही अधिक महीना कालपुरुषकी चोटीसमान होनेसे उसीके ३० दिनोकों प्रमाण गिनती में नहीं लिये जाते. ऐसा दृष्टांत देते हैं. सो भी शास्त्र विरुद्ध है, क्योंकि पुरुषकी उँचाईकी गिनती में उसकी चोटी १-२ हाथ लंबी हो तो भी कुछभी गिनती में नहीं आती, उससे उसका प्रमाणभी नहीं बढ सकता, मगर जैसे देवमंदिरोंके शिखर व पर्वतों के शिखर प्रत्यक्षपणे उनकी उंचाईकी गिनती में आते हैं, उसीसे उन्होंकी उंचाईका प्रमाणभी बढजाता है. तैसेही अधिकमहीने को कालचूला कहा है सो शिखररूप होने से गिनती में आता है, उससे वर्षका प्रमाणभी १२ महीनोंके ३५४ दिनोंकी जगह १३ महीनोंके ३८३ दिनोंका होता है, और वृद्धि के कारण चंद्र वर्षकी जगह अभिवर्द्धित वर्ष कहा जाता है. इसलिये शिखरकी जगह घासरूप चोटी कह करके गिनती में लेनेका निषेध करना सो " करे माणे अकरे " जमालिकी तरह सर्वथा शास्त्र विरुद्ध है । ७- अधिक महीना गिनतीमें न्यूनाधिक है या बरोबर है ? जैन सिद्धांतोंके हिसाब से तो जैसे १२ महीनों के सबी दिन धर्मकार्यों में बरोबर हैं तैसेही अधिक महीना होनेसे १३ महिनों के भी सब दिन बरोबर हैं। इसमें न्यूनाधिक कोई भी नहीं है. और पापी प्राणियों के कर्मोंकाबंधन होनेमें व धर्मीजन के कर्मोंकी निर्जरा होने, समयमात्र भी खाली नहीं जाता और समय, आवलिका मुहूर्त, दिन, पक्ष, मास, वर्ष, युग, पल्योपम, सागरोपमादि कालमानमैसे, समयमात्र भी गिनती में नहीं छूट सकता. जिसपर भी धर्म कार्यों में ३० दिनोंको गिनतीमें छोड़ देनेका कहते हैं या अधिक महीने के दिनोंकों तुच्छ समझते हैं सो जिनाशा विरुद्ध है इसको विशेष पाठक वर्ग स्वयं विचार लेवेंगे । ८- अधिकमहीना नपुंशक है या पुरुषोत्तम है ? जैसे ब्रह्मचारी उत्तम पुरुष समर्थ होने पर भी परस्त्री प्रति नपुं Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034484
Book TitleBruhat Paryushana Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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