SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 285
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [१५७ ] भोनिधिजीनें जैनसिद्धान्त समाचारीमें उसीका खण्डन कराया है उसीको लिखके दिखाकर उसी के साथसाथमें मेंभी समीक्षा न्यायांभोनिधिजीके नामसे करता हूं जिसका कारण पृष्ठ ६६६६८ में इसी ही पुस्तक में छपा हैं इसलिये न्यायां भोनिधिजीके नामसे ही समीक्षा करना मूजे उचित है सो करता हु - जैनसिद्धांत समाचारीकी पुस्तकके पृष्ठ ८७ की पंक्ति २२ वीसें पृष्ठ की पंक्ति १० वी तक का लेख नीचे मुजब जानो -- शुद्धसमाचारीके पृष्ठ १५४ पंक्ति १४ में लिखा हैं कि [श्रावण मास बढ़े तो दूसरे श्रावणशुदी में और भाद्रव मास वढ़े तो प्रथम भाद्रव शुदी में अषाढ चौमासी में ५० में दिन ही पर्युषणा करनी परन्तु अशीमें दिन नही करनी, ऐसा लिखके पृष्ठ १५५ में अपनेही गच्छके श्रीजिनप्रति सूरिजी की रचित समाचारीका प्रमाण दिया है आगे इसी एडके पंक्ति११ में लिखा है कि तिसका पक्षको कोई ने कोई पन्थ में दूषित भी किया है वा नहीं, इसके उत्तर में श्रीजिनवल्लभ सूरिजी के पह की बडी टीकाकी शाक्षी दिवी हैं-- ( इस तरहका लेख शुद्ध समाचारी प्रकाशकी पुस्तक सम्बन्धी लिखके न्यायाम्भोनिधिजी अब उपरके लेखका लिखते हैं ) उत्तर-- हे मित्र ! इस लेख से आपकी सिद्धि कभी न होगी क्योंकि तुमने अपने गच्छका मनन दिखाके अपनेही गच्छका प्रमाण पाठ दिखाया हैं यह तो ऐसा हुवा कि किसी लड़ केने कहा कि मेरी माता सति है शाक्षी कौन कि मेरा भाई इस बास्त ग्रह आपका लेख प्रमाणिक नही हो सकता है ।] अब हम उपरके लेखकी समीक्षा करते हैं कि हे सज्जन पुरुषों जैसे शुद्ध समाचारी कारमें अपना कार्य्यसिद्ध करनेके Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034484
Book TitleBruhat Paryushana Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy