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________________ [ १५४ ] महावीर वासाणं सवीसइ राइमासे वइकन्ते वासावास पज्जोसवेद। भावार्थ:-आषाढ़ चौमासीसे वीश दिन अधिक, एक मास अर्थात् ५० दिन जानेसे, श्रीमहावीर स्वामी पर्युषणा करे। इसी तरहसे वृहत् कल्पचूर्णिके विषे, दशपञ्चके पर्युषणा करना कहा है। यथा-आसाढ चउमासे पडिकन्ते, पंचेहिं पंचेहिं दिवसेहिं गएहिं, जत्य २ वासजोग्गं खेत पडिपुन्न । तत्य २ पज्जोसवेयव । जाव सवीसह राइमासो इत्यादि। ____ भावार्थ:--आषाढ़ चौमासी प्रतिक्रमण किये बाद पांच पांच दिन व्यतीत करते जहां जहां वर्षापास योग्य स्थान प्राप्त होय । वहां वहां पर्युषणा करें, यावत् दशपञ्चक एक मास और वीश दिन तक पर्युषणा करें। और दशमा पंचकमें अर्थात् पचासमें दिन तो योग्यक्षेत्र नहीं मिले तो वृक्षके नीचे भी रहकर पर्युषणा करें, इसी तरह श्रीसमवायाङ्गजी सूत्र तथा कृत्तिके विषे ७०वे समवायाङ्गमें कहा है। तथाहि । समणे भगवं महावीरे वासाणं सवीसइ राइमासे बहकन्ते सत्तरिएहिं राइदिएहिं सैसेहिं वासावासं पज्जोसवेइ । भावार्थ:-श्रमण भगवन् श्रीमहावीर स्वामीजी वर्षाकालके एकमास और वीश दिन गए बाद पर्युषणा करें। इसलिये पचास दिने करके ही पर्युषणा करना अवश्य है और पीछाडी 90 दिन कहे सो मास वृद्धि के अभावसे न कि मासवृद्धि होते भी। और ऐसा भी न कहना कि मासवद्धि होने से अधिक मास गिनतीमें न आता है क्योंकि वहत् कल्पभाष्य तथा चर्णिके विषे, अधिक Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034484
Book TitleBruhat Paryushana Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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